(ट्रेक सीजी न्यूज छत्तीसगढ/सतीश पारख)
वइसे त तीजा के तिहार ल,पूरा भारत देश के संग नेपाल मं घलो सुघ्घर ढंग ले मनाय जाथे।फेर हमर छत्तीसगढ़ के तीजा तिहार के परम्परा सबले अलग हे।इहा के परम्परा में सम्मान व सामाजिक संतुलन के सुघ्घर मेल दिखथे। हमर समाज मं पितृगत कुल बेवस्था चलत हे।जउन मं पिता के संपत्ति मं पुत्र के अधिकार रहिथे।जेकर सेती बेटी अउ बेटा मं भेद पैदा हो जथे,बेटी मन अपन आप ल उपेक्षित महसूस करथे। इही सब समसिया ल दूर करे खातिर सरकार ह बेटी अउ बेटा दुनोझन ल पिता के संपत्ति मं बराबर के हकदार बनाके बेटी मन ल समानता के अधिकार दिस।आज भी समाज मं कुछ लोगन ये बात ल स्वीकार नई कर पावत हे के बेटी अउ बेटा दुनो बराबर हे। वो मन समझथे के बेटी पराया धन हरे बिहाव के बाद ओकर अधिकार ओकर ससुराल मं हवे।आज जमाना बदलत हे अउ लोगन के बिचार घलो बदलत हे, एकर बावजूद कई जगह अभी भी महिला मन ल अपन हक अउ पहचान बर लड़े ल पड़त हे।
मोर अतका बात लिखे के अरथ ये हे के छत्तीसगढ़ के तीजा पोरा के परमपरा ह बहुत अलग हे।इहा अइसने समसिया ह, इहा के अलग परम्परा के सेती न के बराबर हे। इहा बेटी बहिनी मन ह मइके मं आके ये तीजा तिहार ल मनाथे। ये तिहार मं भाई या ददा ह अपन बेटी या बहिनी ल ओकर ससुराल मं जाके अपन घर आय बर नेवता देथे या संगे मं लाथे जउन ल "तीजा लाय " ले जाने जाथे अउ तीजा अवइया बेटी माई मन ल तिजहारिन कहे जाथे, अउ तीजा लनइया मन ल तिजहारा कहे जाथे।बेटी बहिनी मन अपन ससुरार मं अपन पास पड़ोस देरानी जेठानी मन ल पूछते के तुंहर तिजहारा आगे का ,कब जात हस ।वइसने महतारी मन गोठियाथे तुंहर घर तिजहारिन मन आगे कब जाथे तीजा लाय बर।ये गोठ बात मन 15 दिन पहिली सुरु हो जथे।नवा बिहाव वाले मन ल आसाढ़ लगते, थोड़कुन जुन्ना होय के बाद आठे मान के अउ जादा जुन्ना होगे त पोरा तिहार के अइसे दिन तिथि मं तिजहारिन मन ल लाय जाथे।जउन ल जइसन सुविधा होथे वइसन आथे।हिंदी महीना के तीज के दिन ये तिहार ल मनाय जाथे एकर सेती येला तीजा कहे जाथे।
ये दिन ले 24 घण्टा निर्जला उपवास रहिथे। तीजा के एक दिन पहिली बेटी मन सब सकला जाथे अउ करेला साग के संग घर घर घूम के भात खाते जउन ल करू भात कहिथे।इही बीच मं बेटिमाई मन आपस मं मिलथे अउ अपन सुख दुख ल गोठियाथे।ये उपवास अउ करू भात के पीछे वैज्ञानिक कारण हे।आप मन जानथव के अमावस्या अउ पूर्णिमा के दिन समुद्र मं ज्वार भाटा आथे वइसने किसम ले हमर शरीर मं घलो 70 % जल हावे जेकर सेती ये तिथी मं हमर शरीर मं एक बिसेस शाररिक अउ मानसिक परिवर्तन होथे जेकर सीधा असर हमर शरीर मं होथे जेकर ले हमर जीवन चर्या प्रभावित होथे एकर सेती ऐमा संतुलन बनाय खातिर ये तिथि मं या ओकर आप पास के तिथि मं निर्जला उपवास रेहे जाथे।अक्सर देखहु जतका भी तीज तिहार ह सब इही तिथि के इर्दगिर्द रहिथे।इही सेती उपवास रहे जाथे ।सबले बड़े बात निर्जला उपवास के पहिली पेट साफ रहना चाहि बरसात के मौसम के आधार मं करेला आसानी ले उपलब्ध हो जाथे अउ ओकर तासीर के आधार मं पेट बर बने हे एकर सेती उपवास के पहिली करेला साग खाय के परम्परा हे।उपवास ल तोड़ना हे त निर्जला उपवास के बाद तुरन्त मोटा आहार नई लेना चाहि हल्का,नरम ,पतला तथा तासीर मं ठंडा रहाय एकर सेती सिंघाड़ा या सूजी के कतरा खाय जाथे।तब दोपहर मं ठेठरी खुरमी अउ कोचई पत्ता के इडहड़ के साग महि के संग राँध के फेर घर घर घूम के खाय जाथे फेर एक बार बेटी माई मन अपन बीते बचपन ल सुरता करथे अउ वर्तमान पारिवारिक जीवन के सुख दुख के गोठ बात करथे मेल जोल करथे।इही बहाना बछर ले पिछड़े अपन संगी साथी के संग मेल जोल करके अपन रिश्ता ल फेर मजबूत बनाते।ये बीच मं भाई अउ ददा मन ओकर मन बर लुगरा के संग अपन पुरत ले अउ उपहार देथे।इही सम्मान के आस मं बेटी अउ बहिनी मन ल रहिथे ये सम्मान ह छत्तीसगढ़ मं बेटी अउ बेटा के बीच के फरक ल कम करथे।अपन भाई ले बटवारा नई मांगे।ओमन कहिथे के एक लोटा पानी के आसा हे भाई , हमन ल बटवारा नई चाहि।ये प्रेम अउ समर्पण के भाव ह बहुत ही भावनात्मक तरीका ले भाई बहन के प्रेम ल जोड़ के रखथे।इही भाव के साथ छत्तीसगढ़ मं तीजा के तिहार ल मनाय जाथे।
हमर भारतीय संस्कृति मं हमन हर जिनिस ल आध्यात्म ले जोड़ के देखथन ओमा छत्तीसगढ़ सबले अउवल हे।तीजा के दिन बेटी माई मन शिव,पार्वती अउ नंदी के पूजा करथे।शिव अउ पार्वती पुरुष अउ प्रकृति के रूप हरे एकर सेती ओकर पूजा करके ओकर प्रति कृतज्ञता प्रगट करथे अउ ओकर ले अपन परिवार के सुख शांति के कामना करथे।अउ नंदी महाराज के कृषि मं बिसेस योगदान हे अउ ओला शिव के वाहन घलो बोले जाथे तेकर सेती ओकर पूजा करे जाथे।एकर ले सम्बंधित कथाकहानी त बहुत हे फेर बेवहारिक बात ऊपर जादा जोर देना चाहि।
ऐमा एकठन भरम लोगन के हावे के ये तिहार ह सुहागिन मन के हरे त ये बात बहुत ही स्पष्ट हे के ये तिहार ह छत्तीसगढ़ के संदर्भ मं पूरा बेटी माई अर्थात पूरा महिला समाज आधा आबादी के हरे।जरुरी नई हे के वो सिरफ सुहागिन रहाय।ये बेटी बहिनी मन ल सम्मान देय के संग एकठन अउ मजेदार बात आय हे के बहिनी के संग भाचा मन ल घलो बिसेस सम्मान सिरिफ हमर छत्तीसगढ़ मं ही दिये जाथे।माने बहिनी के संग ओकर लइका के घलो सम्मान करें जाथे।बहिनी के लइका ल भाचा भाची कहे जाथे।ये बात यदि हमन राम अउ माता कौशल्या के कहानी संग नई जोड़बो तभो ले छत्तीसगढ़ीया समाज मं भाचा के बिसेस सम्मान करें जाथे।काबर के ओह बहिनी डाहर के वारिस हरे यदि समाज ह बहिनी के सम्मान मं कोनो परकार ले कमी करही त बहिनी ह मया के खातिर चुप रही जाहि फेर भाचा ह चुप नई रहाय वो ह अपन महतारी के अधिकार के बात कर सकत हे इही सेती भाचा भाची मन ल बिसेस दान दक्षिणा देय के परम्परा हे।ये ह एक सामाजिक, पारिवारिक लिंगीय भेद के बीच संतुलन बनाय के परम्परा हरे।ये सामाजिक जरूरत ह ममा भाचा के रिश्ता ल अउ प्रगाढ़ कर देथे.
ये किसम ले मे ह तीजा तिहार के पाछु सामाजिक कारण खोजे के कोसिस करे हव।
घनश्याम गजपाल
सरपंच,ग्राम पंचायत करगाडीह तहसील व जिला दुर्ग छ ग