जरखान ट्रैक सीजी ब्यूरो प्रमुख बीजापुर
मण्डल संयोजक, अधीक्षक एवं विभिन्न पदों पर काबिज होने के लिए शिक्षकों में होड़ सी लग गई है। शिक्षकों का कार्य बच्चों को बेहतर शिक्षा देना एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करना होता है, किंतु शिक्षकीय कार्य छोड़कर शिक्षक अधिकारी एवं अधीक्षक बनने के लिए नेताओं और अधिकारियों के चक्कर लगाते हुए देखे जा सकते हैं। एक ओर शासन चाहती है कि शिक्षा में सुधार हो। नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा हुए चार साल बीत गए हैं। इस उपलक्ष में केंद्र सरकार की तरफ से शिक्षा सप्ताह भी मनाया जा रहा है।

वह भी कई शालाओं में खाना पूर्ति की जा रही है। जिले के बच्चों को बुनियादी साक्षरता एवं गणितीय दक्षताओं को हासिल करने में आज पर्यन्त सफल नहीं हुए हैं। जबकि 2026–27 तक बच्चों में इन दक्षताओं को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। हाल ही में उसूर विकासखंड के अधीक्षकों ने प्रभारी मंडल संयोजक के विरुद्ध मोर्चा खोलकर धमकी देने एवं पैसे मांगने का आरोप लगाया है। देखने वाली बात ये है कि, इसमें कौन दोषी है ? कई अधीक्षक ऐसे हैं, जो कई सालों से अंगद के पांव की तरह जमे हैं, किंतु आश्रम छात्रावासों में शिक्षा की गुणवत्ता कही भी दिखाई नहीं देती। इधर मंडल संयोजक भी निरीक्षण के नाम पर खाना पूर्ति करते दिखाई देते हैं।

हाल ही में भोपालपटनम एवं उसूर के मंडल संयोजक के विरुद्ध निरीक्षण न करने एवं व्यवस्थाओं को न सुधारने के कारण सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। लेकिन व्यवस्थाओं में किसी प्रकार का सुधार होता हुआ नहीं दिख रहा है। आदिवासी विकास विभाग केवल बच्चों के मानसिक और शैक्षणिक शोषण करने पर तुला हुआ है। शिक्षा के नाम पर बच्चों को आश्रम छात्रावासों में भर्ती करवाया जाता है, शासन प्रशासन केवल उनके रहने खाने पीने पर ज़्यादा ध्यान दे रही है,लेकिन वह सारी व्यवस्थाएं भी मैदानी स्तर सही नहीं दिख रही हैं। शिक्षा की बात करना तो दूर की बात है। जब तक जोड़–तोड़ की राजनीति शिक्षा पर हावी रहेगी तब तक बच्चों का शैक्षणिक स्तर गिरता ही चला जाएगा। यदि बीजापुर जिले में शिक्षा का स्तर सुधारना है तो शिक्षा में राजनीति को बंद करना पड़ेगा। शिक्षकों को उनके मूल कार्य शिक्षण में ध्यान लगाना होगा।