(ट्रेक सीजी न्यूज छत्तीसगढ़/सतीश पारख)
कौन सही कौन गलत , यह निर्णय आप और हम नहीं कर सकते , अदालत करेगी । अदालत के बाद एक और बड़ी अदालत देश में मौजूद है । वह है जनता की अदालत । वैसे जनता की अदालत से भी बड़ी एक और अदालत है – ऊपर वाले की अदालत । ऊपर वाले के पास एक लाठी भी है जो बे आवाज है । उसका न्याय बेमिसाल है , कण भर भी इधर से उधर नहीं । वह बे आवाज लाठी जब पड़ती है तो अन्याय करने वाला बर्बाद हो जाता है , तबाह हो जाता है । समय की ताकत से कोई नहीं बचा । एक न एक दिन सभी का समय आता है । जब आता है तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है । एक बड़ा सवाल इस समय पूछा जा रहा है । क्या ईडी, सीबीआई , एनसीबी और आईटी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियां स्वतंत्र हैं ? वास्तव में स्वतंत्र हैं ? यहां एक और सवाल जो बार बार पूछा जाता है । क्या चुनाव आयोग स्वतंत्र है ? हमें वे दिन याद हैं जब अपनी इन्हीं इकाइयों के दम पर कांग्रेस ने भी खूब खेला था । मनमोहन सिंह के जमाने में सीबीआई को सरकार का तोता बता दिया गया था । यदि केंद्रीय जांच एजेंसियां आज गलत हैं तो खुलकर कहिए कि तब भी गलत थी ? साथ ही यह भी बताइए कि जब आपातकाल में लाखों लोगों की जबरन नसबंदी कराई जा रही थी , जब विपक्ष के नेताओं को चुन चुन कर जेलों में ठूंसा जा रहा था , जब अखबारों के तमाम दफ्तरों में सरकारी अधिकारी बैठकर खबरों पर स्याही फेंक रहे थे , तब भी सरकार गलत थी ? जब सिक्खों को घरों से निकालकर जलाया जा रहा था , तब भी सरकार गलत थी ?हम मानते हैं पिछले कुछ वर्षों से ईडी की जबरदस्त कार्यवाहियां देशभर में चल रही हैं । यह भी ठीक है कि तमाम गतिविधियाँ विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं । सत्तारूढ़ भाजपा और उनके सहयोगियों के खिलाफ़ एक भी कार्यवाही केंद्रीय जांच एजेंसियों ने नहीं की । सवाल यह है कि ऐसे कितने मामले हैं जिन्हें जांच एजेंसियां कोर्ट में सिद्ध कर पाई हैं ? कनविक्शन रेट यदि 50% नहीं है तो सरकार बताए कि कौन दोषी है ? एजेंसियों और सरकार ने यह प्रतिशत अधिकृत रूप से आज तक नहीं बताया ? संदेह का यही प्रमुख कारण है । इन कार्यवाहियों से विपक्षी दल काफी प्रभावित हो रहे हैं । जिनके खिलाफ कार्यवाही हुई उनसे बरामदगी का पूरा लेखा जोखा जनता के सामने लाया जाना चाहिए । ऐसा करने में ईडी अभी तक बहुत कामयाब नहीं हुई है ।अफसोस की बात है कि 76 साल बाद भी भारत में भ्रष्टाचार का बाल तक बांका नहीं हुआ है । अनेक सरकारें आई और गई , भ्रष्टाचार वहीं का वहीं । राजनीति में भ्रष्टाचार अक्षम्य है । राजनीति ही भ्रष्ट हो जाएगी तो उस पर केंद्रित सरकार और सरकार में निहित ब्यूरोक्रेसी तो निरंकुश हो जाएगी । अगर ढूंढा जाए कि देश में भ्रष्टाचार से मुक्त कितने नेता हैं तो गिनती कर पाना मुश्किल हो जाएगा । निश्चित रूप से भ्रष्ट पत्रकारों , नेताओं , मशीनरी से जुड़े अधिकारियों , विभागीय अधिकारियों , कार्यपालिका , न्यायपालिका आदि की विस्तृत पड़ताल के लिए कोई तरीका देश में नहीं है । भ्रष्टाचार निम्नस्तर पर भी बेशुमार है । इसके लिए छोटी और बड़ी दोनों मछलियों को पकड़ना जरूरी है । क्या भारत अभी 1000 साल तक भी भ्रष्टाचारमुक्त नहीं हो पाएगा ? शायद नहीं । भ्रष्टाचार कैंसर की तरह गांव शहर फैल गया है । इसकी जड़ें काटना फिलहाल संभव नहीं *(साभार)*