समूचे मध्य भारत की पहली महिला इंजीनियर प्रमिला खुराना (नायर) का 17 मार्च को सूर्य विहार स्थित निवास में 90 साल की उम्र में निधन हो गया। वे भिलाई स्टील प्लांट में नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला इंजीनियर भी थीं। रामनगर मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। स्व. प्रमिला के पिता द्वारकानाथ खुराना तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन के लोक निर्माण विभाग में अफसर थे और स्व. प्रमिला की स्कूली पढ़ाई दुर्ग की प्राथमिक शाला तितुरडीह और हिंदी भवन के सामने शासकीय बहुद्देशीय (अब जेआरडी) स्कूल में हुई। इसके बाद सेंट जोसेफ कान्वेंट जबलपुर से उन्होंने सीनियर कैंब्रिज किया। फिर 1953-54 में उनका दाखिला जबलपुर के शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज में कराया गया। यहां उन्होंने टेलीकम्यूनिकेशन में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और इस तरह समूचे मध्य भारत की वह पहली महिला इंजीनियर बनीं। सितंबर 1957 में उन्हें भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन विभाग में नियुक्ति मिली। तब वह यहां बीएसपी में नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला इंजीनियर थीं। यहां उन्होंने डिजाइन ब्यूरो में अपना महत्वपूर्ण दायित्व निभाया। कालांतर में भिलाई के डिजाइन ब्यूरो को विस्तारित जब मेटलर्जिकल एंड इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स (इंडिया) लिमिटेड-मेकॉन का गठन हुआ तो 1970 में उनका तबादला मेकॉन भिलाई से रांची मुख्यालय कर दिया गया। मेकॉन में रहते हुए स्व. प्रमिला का भिलाई स्टील प्लांट की 40 लाख टन तक की परियोजनाओं व स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड-सेल की विभिन्न विस्तारीकरण व आधुनिकीकरण परियोजनाओं में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान रहा। बीएसपी की 25 से 40 लाख टन उत्पादन क्षमता की विस्तारीकरण परियोजना के दौरान स्व. प्रमिला मेकॉन की ओर से प्रोजेक्ट मैनेजर थी। इस दौरान करीब 70 हजार ड्राइंग के साथ उन्होंने भिलाई और रांची मुख्यालय के बीच समन्वयक की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। इंजीनियरिंग में उनके विशिष्ट योगदान को देखते हुए 4 जनवरी 1985 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन द्वारा मेटलर्जिकल एंड इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स (इंडिया) लिमिटेड के आईएमएम-सिन्नी फैन बेस्ट वुमैन एग्जीक्यूटिव सिल्वर अवार्ड से सम्मानित किया गया। साथ ही उन्हें इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स (इंडिया) द्वारा दिसंबर 1991 में सुमन श्रम अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। 1992 में सेवानिवृत्ति के बाद आदर्श नगर दुर्ग के घर में रह कर वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। इस दौरान उन्होंने कई गरीब बच्चों का भविष्य भी संवारा। कुछ तो उनकी वजह से आज विदेश तक भी पहुंचे हैं। वर्तमान में नायर परिवार सूर्य विहार नेहरू नगर में रह रहा था। वह अपने पीछे पति बालचंद्र नायर, बेटी-बेटे माया नायर, जयचंद्रन नायर और हीरा कोल्ली सहित बहू-दामाद और नाती-पोतों सहित भरा-पूरा शोकाकुल परिवार छोड़ गईं हैं।
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