जगदलपुर (ट्रेक सीजी न्यूज छत्तीसगढ़/सतीश पारख)
छत्तीसगढ़ सहित दण्डकारण्य बस्तर रामायणयुगीन एवं महाभारत से संबंधित अनेकों पौराणिक एवं जनश्रुति अनुरूप कथाएँ विद्यमान है l
इतिहास के जानकार रोहन कुमार ने बताया पौराणिक काल से जुड़ा वर्तमान बस्तर रामायण काल में दण्डकारण्य व महाभारत काल मे कांतार के नाम से कई एतेहासिक साहित्यो मे उल्लेख मिलता है l सहदेव द्वारा विजित क्षेत्र प्राक्कोसल ( छत्तीसगढ़) मे बिलासपुर जिले के रतनपुर( मणिपुर) व रायपुर जिले के आरंग( भांडेर) से मोरध्वज व ताम्रध्वज की व महासमुंद जिले के सिरपुर(चित्रांगदपुर) से अर्जुन पुत्र बभ्रूवाहन की व इसी महासमुंद जिले के खल्लारी ( खल्लवाटिका) से भीम के पदचिन्ह,भीम चूल्हा,भीम खोह,लाक्षागृह व सक्ती जिले के गुंजी (दमउदरहा) ऋषभदेव, व मुंगेली जिले का पंडवानी तालाब पांडवो द्वारा निर्मित माना जाता है व बस्तर के बीजापुर मे पुजारी कांकेर मे स्थित पांडव पर्वत मे पांच पांडवो के अलग अलग मन्दिर, व भोपालपटनम का सकलनारायण गुफा,जांजगीर जिले का भिम्मा तालाब को पांडव कालीन से संबंधित होना इतिहासकारो ने माना है जिसके प्रमाण कई स्थानों और जनश्रुति मे विद्यमान है l
ग्राम के लक्की नारायण और दया सिंह के द्वारा जानकारी मिलने पर रोहन कुमार व समाजसेवी टीम भीम शिला पहाड़ी पहुँच अवलोकन किया जिसमें कुछ पत्थरों पर पैर नुमा निशान अर्थात् जन श्रुति अनुसार भीम या शिव के पैरो के निशान व खुर के निशान अर्थात् नंदी से तुलना हुई होगी l बस्तर वैसे भी रामायण,महाभारत काल,छिंदक, नल, गुप्त, काकतीय से कई एतेहासिक साक्ष्य और जनश्रुतियो में सदैव विद्यमान रहा है l इससे संबंधित विभाग को इस क्षेत्र को संरक्षित और अनुसंधान करने की आवश्यकता है ताकि वास्तविक इतिहास सुरक्षित हो lदया सिंह सूर्यवंशी ग्राम निवासी ने बताया की पूर्वजो से हम इन पहाड़ियों को पूजते आ रहे है, हमारे पूर्वजो का कहना था की यह देवताओं का पहाड़ है यहाँ वह निवास करते है l
लक्की नारायण मांझी परिवार ने बताया की उनके पूर्वज बताते थे की यहा पांडव कुछ समय व्यतीत किये थे,जहा आज भी पूजन होती है वहा कुछ निशान,पदचिन्ह को भीमखोज अर्थात् भीम का पाँव मानते आये है l
बजरंग दल के मुन्ना बजरंगी ने बताया की हमे जानकारी मिलने पर आसपास साफ सफाई कर ध्वज बांध पूजा अर्चना की और बताया की शासन से हम इन क्षेत्र का संरक्षण और अनुसंधान हेतु जल्द पत्राचार करेंगे l