छत्तीसगढ़ प्रदेश भर में रिकॉर्ड तोड़ धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर किया गया हैं ,पूरे प्रदेश में एक करोड़ 44 लाख 92 हजार 96 मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई ! मार्कफेड के अनुसार अब तक पूरे प्रदेश भर से एक करोड़ 10लाख मीट्रिक टन धान का उठाओ डीओ के विरुद्ध मिलर द्वारा किया जा चुका हैलेकिन धान खरीदी के बाद से डियो नहीं कटने एवं कटे हुए डीओ विरुद्ध धान के उठाव नहीं होने के कारण समिति प्रबंधक के माथे पर चिंता की लकीरें साफ-साफ दिखाई दे रही हैं उन्हें डर है कि प्रत्येक वर्ष की भाती समय पर धान के परिवहन नहीं होने से उपार्जन केंद्र में रखे धान का सुखना, चूहों का आतंक बारिश से नुकसान तेज हवाओं से केप कवर का फटना, देख भाल के लिए कर्मचारी नुकसान स्वाभाविक है!सुखद आने के कारण समिति को शॉटेज का सामना करना पड़ता है ! जिसकी भरपाई करने का निर्देश सहित दबाव समिति प्रबंधकोंके ऊपर होता है ! आखिर ऐसा क्यों ?जबकि समिति के समस्त कर्मचारी पूरे धान खरीदी में दिन-रात एक कर प्रक्रिया का पालन करते हुए पूरी पारदर्शिता से धान की खरीदी करते हैं ! इस बीच कभी कभी किसानों से तू तू मैं मैं, पत्रकारों की तीखी सवाल ,और अधिकारियों के निर्देश सहित अन्य कई परेशानी से जूझते हुए काम करते हैंताकि समिति को नुकसान ना हो,जीरो शॉर्टेज आ जाए और समिति को प्रोत्साहन राशि मिले, लेकिन उनके सोच के विपरीत कार्य होने के कारण समिति को लाखों रूपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है ! आखिर ये किसकी गलती से हो रहा है? इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? शासन प्रशासन सरकारी सिस्टम या धान उपार्जन केंद्र ?अगर उपार्जन केंद्र में रखे धान का सही तरीका से समय पर परिवहन नहीं करा सकते तो जिला स्तर के नोडल, पर्यवेक्षक बनाने की जरूरत क्या है आखिर समिति की मजबूरी को समझना उनकी बातें को उच्च अधिकारी तक पहुंचाना और समस्या को हल करना ही एक नोडल पर्यवेक्षक का काम हैउप पंजीयक, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक नोडल अधिकारी ,डीएमओ ,खाद्य अधिकारी, यह सभी लोग जिले के उच्च अधिकारी हैं ! धान खरीदी में समितियो के ऊपर इनका इंटरफेयर आदेश निर्देश दबाव आपको स्पष्ट देखने के लिए मिल जाएगा लेकिन जब बात जवाबदारी की आती है, समस्या को हल करने की बारी आती है, आर्थिक नुकसान से बचाने की बारी आती हैं तो ये सब पावरफूल पद में बैठे अधिकारी अपंग हो जाते हैं असहाय हो जाते हैं , इनका पावर उस टाइम कोई काम नहीं करता सिर्फ समिति प्रबंधक जाने ! दोषी हमेशा समिति प्रबंधक ही क्यों ? क्या समिति प्रबंधक अपना खेत बेचकर समिति को हुए धान शोर्टेज की भरपाई करने के लिए नौकरी कर रहे हैं ? प्रत्येक सत्र में धान खरीदी के लिए उपार्जन नीति बनाया जाता है लेकिन उपार्जन नीति भी कोई काम का नहीं अभी तक सफेद हाथी ही साबित हुआ हैं समझो दिखावा! उपार्जन नीति को तो उच्च अधिकारियों को बाकायदा ग्लास में फ्रेम बनवाकर के अपने चेंबर के सामने लटका कर रखना चाहिए ताकि समझ में तो आए 72 घंटा में परिवहन का मतलब, बफर लिमिट किसको बोलते है! आज तक ऐसा कौन सा समिति है जिसे अग्नि, चोरी या प्राकृतिक आपदाओं से क्षति पहुंची हो और उसका बीमा क्लेम पास हुआ हो ! सिर्फ दिखावा क्यों ? किसके लिए है यह उपार्जन नीति अगर आप खुद अपने बनाए हुए नियम का पालन नहीं कर सकते उस नियम पर नहीं चल सकते तो इस नियम को बनाने की क्या जरूरत हैं ?प्रदेश भर के समिति प्रबंधकों द्वारा शासन से कई बार मांग किए गए है कि जो मार्कफेड को संग्रहण केंद्र में सुखत के लिए छूट दी जाती हैं वही छूट समिति को दिया जाए ताकि समिति को करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होने से बचाया जा सके ! उनकी मांग जायज भी हैं ! लेकिन समिति को आजतक कोई सीरियस लिया ही नहीं सब अपने स्तर में अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं !
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