भाजपा शहर मण्डल बागबाहरा में 26 दिसम्बर के दिन दशमेश गुरुगोबिन्दसिंघजी के साहिबज़ादों (पुत्रों) के बलिदान की स्मृति में “वीर बालदिवस” मनाया गया। अपने देश व धर्म की रक्षा के लिए गुरुगोबिन्दसिंघजी के चारों पुत्रों बाबाजुझार सिंघजी, बाबाजोरावर सिंघजी, बाबाफतेह सिंघजी और बाबाअजीत सिंघजी ने अपने प्राणों की आहुति दी थी जिसका स्मरण करते हुवे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जनवरी 2022 को गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व के दिन, 26 दिसंबर को “वीर बाल दिवस” मनाने की घोषणा की थी ताकि पूरा देश इनके बलिदान को जान सके व प्रेरणा ले सके। कार्यक्रम के विषय मे जानकारी साझा करते हुए मीडिया प्रभारी तुलसी यादव ने बताया कि मण्डल अध्यक्ष प्रेम (रूपेश) साहू के नेतृत्व में बागबाहरा शहर के नेतृत्व में वीर बाल दिवस पर गोष्ठी आयोजित की गयी थी जिसमें कार्यक्रम के प्रभारी मण्डल महामंत्री हरमीतसिंघ बग्गा थे। कार्यक्रम में मुख्य रूप से खल्लारी विधानसभा प्रत्याशी व जिला पंचायत सदस्य अलका चन्द्राकर, मण्डल उपाध्यक्ष चंद्रशेखर ध्रुव, मंत्री दिनेश चन्द्राकर, भाजयुमो जिलाध्यक्ष जसराज (बाला) चन्द्राकर, सांसद प्रतिनिधि भोजनाथ देवांगन, नरेंदर बग्गा, दुर्गादुर्गाशंकर दुबे, हेतराम चन्द्राकर, रमन वर्मा, बलराम ठाकुर, डेविड साहू, गजेन्द्र साहू, शिवा साहू, योगेश चिन्दा, नन्दू सोनी व कार्यकर्तागण उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन करते हुवे हरमीतसिंघ बग्गा ने कार्यक्रम की रूपरेखा रखी, मुख्यवक्ता के रूप में उपस्थित अलका चन्द्राकर ने सभा को सम्बोधित करते हुवे बताया कि इसके पीछे एक कहानी है की मुगल शासनकाल के दौरान पंजाब में दशमेश गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटे थे। उन्हें चार साहिबजादे खालसा कहा जाता था। 1699 में गोबिंद सिंघजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। धार्मिक उत्पीड़न से भारतीयों की रक्षा करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी। तीन पत्नियों से गुरु गोबिंद सिंघजी के चार बेटे: अजीत, जुझार, जोरावर और फतेह हुवे और सभी खालसा का हिस्सा थे। उन चारों को 19 वर्ष की आयु से पहले मुगल सेना द्वारा मार डाला गया था। उनकी शहादत का सम्मान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाएगा। वीर बाल दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंघजी के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई विशेषकर छोटे साहिबज़ादों की। सिरसा नदी के तट पर एक लड़ाई के दौरान दोनों साहिबज़ादों को मुगल सेना ने बंदी बना लिया था। इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर उन्हें क्रमशः 7 और 5 साल की उम्र में कथित तौर पर जिंदा दफन कर दिया गया था। आज देश वीर साहिबज़ादों के अमर बलिदान को याद कर रहा है, उनसे प्रेरणा ले रहा है। आजादी के अमृतकाल में वीर बाल दिवस के रूप में ये एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ है। पिछले वर्ष, देश ने पहली बार 26 दिसंबर को “वीर बाल दिवस” के रूप में मनाया था। तब पूरे देश में सभी ने भाव-विभोर होकर साहिबज़ादों की वीर गाथाओं को सुना था। वीर बाल दिवस भारतीयता की रक्षा के लिए, कुछ भी कर गुजरने के संकल्प का प्रतीक है। ये दिन हमें याद दिलाता है कि शौर्य की पराकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती। ये उस महान विरासत का पर्व है, जहां गुरु कहते थे- “सूरा सो पहचानिए, जो लरै दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरै, कबहू ना छाडे खेत।” माता गुजरी, गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके चारों साहिबजादों की वीरता और आदर्श, आज भी हर भारतीय को ताकत देते हैं। इसलिए वीर बाल दिवस, उन सच्चे वीरों के अप्रतिम शौर्य और उनको जन्म देने वाली माता के प्रति, राष्ट्र की सच्ची श्रद्धांजलि है। आज हम बाबा मोती राम मेहरा, उनके परिवार की शहादत औऱ दीवान टोडरमल की भक्ति को भी श्रद्धापूर्वक याद करते हैं। हमारे गुरुओं के प्रति अगाध भक्ति, राष्ट्र भक्ति का जो जज्बा जगाती है, ये उसकी मिसाल है।
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