देवउठनी एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया गया । सुबह से देवउठनी पर्व के लिए बाजार सज गई थी, और खासी रौनक छाई हुई थी । गन्ना और पूजन सामग्री खरीदने के लिए लोग सुबह से पहुंच रहे थे। इस पर्व को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्मलंबियों के लिए यह खास पर्व है। यह त्यौहार वर्ष के कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है । शास्त्रों के मुताबिक तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता विवाहसूत्र में बंधे थे । जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। तुलसी माता की पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से भक्तों को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। आज देवउठनी एकादशी के दिन भक्त लोगों ने ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि किया और व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद भगवान विष्णु की आराधना करते हुए एक चौकी पर तुलसी का पौधा और दूसरी चौकी पर शालिग्राम को स्थापित कर किया गया। बगल में एक जल भरा कलश रखते हैं और उसके ऊपर आम के पांच पत्ते रखते हैं । तुलसी के गमले में गेरू लगाए जाते हैं। और घी का दीपक जलाया जाता है। फिर तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव कर रोली चंदन का टीका लगाकर पूजन शुरू किया जाता है। तुलसी के गमले में ही गन्ने से मंडप बनाते हैं। तुलसी को लाल चुनरी अर्पित करते हुए साड़ी चढ़ाते हैं और तुलसी को दुल्हन की तरह सजाते हैं। इसके पश्चात भगवान शालिग्राम को चौकी समय ठाट में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा करते हुए विवाह संपन्न कराया जाता है। इसके बाद आरती एवं प्रसाद का वितरण किया जाता है।यह सारी प्रक्रिया पूर्ण कर एकादशी पर्व पूर्ण होता है इस दिन के बाद से ही विवाह जैसे अनेक मांगलिक कार्य प्रारंभ किए जाते है ।
देवउठनी पर बाजार में सुबह से रही रौनक,मांगलिक कार्य देवउठनी के साथ पुनः प्रारंभ।
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