प्रवीन ऋषि ने कहा कि ऐसा जीवन जीना चाहिए कि आपका अस्तित्व आपका कुल बता दे। जैसे श्रीपाल का जीवन है। श्रीपाल अकेला ही सफर पर निकला था, लेकिन उसकी शुभ लेश्या उसके साथ थी। नवकार महामंत्र की शक्ति के बल पर उसने कई कार्य किए, जिसके कारण उसका जीवन एक उदाहरण बन गया। सोमवार को लालगंगा पटवा भवन में श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने बताया कि धवल सेठ के साथ श्रीपाल समुद्री यात्रा पर निकल पड़ा। समुद्र के रास्ते दोनों बब्बरकूल नगरी पहुंचे। यहां धवल सेठ व्यापर करने लगा। लेकिन लालच वश सेठ ने कर चोरी की, राज्य का टैक्स नहीं पटाया तो सैनिकों के उसे पकड़ लिया। इस दौरान उसने राजा महाकाल के कर्मचारियों पर हमला भी कर दिया, तो राजा के आदेश से सैनिकों ने उसके सभी जहाज और सारा सामन जब्त कर लिए। श्रीपाल तो अपना मजे से नगर भ्रमण कर रहा था, जब उसे पता चला तो वह दौड़ता हुआ आया और सैनिकों से अकेले भिड़ गया। शस्त्रहरणी विद्या के चलते कोई सैनिक उसके सामने नहीं टिक पाया। राजा महाकाल को जब पता चला तो वह खुद आया, लेकिन उसे श्रीपाल ने परास्त कर दिया। राजा के परास्त होते ही धवल सेठ के आदमियों ने उसे बंदी बना लिया, लेकिन श्रीपाल के कहने पर उसे छोड़ दिया। राजा को लगा कि यह सच्चा वीर है, इसका विवाह अपनी पुत्री से कराने का उसने निश्चय किया। उसने श्रीपाल के सामने प्रस्ताव रखा लेकिन उसने मना कर दिया। राजा ने जिद पकड़ ली, तो श्रीपाल ने कहा कि आप मुझे नहीं जानते है, मेरा कुल नहीं जानते है, फिर आप अपनी पुत्री का विवाह मेरे साथ क्यों करवाना चाहते हैं? राजा ने कहा कि हीरा खरीदने से पहले यह नहीं देखा जाता कि वह किस खदान से आया है। तुम्हारी वीरता ही तुम्हारे कुल की निशानी है। राजा ने बहुत मनाया, और अंत में श्रीपाल का विवाह राजा महाकाल की पुत्री मदनसेना से हो गया। कुछ दिवस वहां बिताने के बाद वे आगे बढ़ गए। समुद्र यात्रा करते हुए श्रीपाल और धवल सेठ रत्न द्वीप पहुंचे। वहां के राजा रतनसेन को अपनी पुत्री के विवाह की चिंता सता रही थी। वह संतों के पास जाता है, अपनी समस्या लेकर। संत कहते हैं कि जो तुम्हारे मदमस्त हाथी को शांत करेगा, वही तुम्हारी पुत्री से विवाह करेगा। राजा ने अपने सैनिकों को हाथी पर नजर रखने का आदेश दिया, जब मद में आएगा तो इसे रोकना मत। धवल सेठ ने श्रीपाल को अपने आधे जहाज का मालिक बना दिया था। धवल सेठ ने कहा कि चलो व्यापार करें, श्रीपाल ने कहा कि तुम व्यापार करो, मैं नगर भ्रमण कर के आता हूँ। खरीदना-बेचना तुम्हारा कार्य है, तुम करो। यह कहकर वह निकल जाता है। वहां राजा का हाथी मद में आ जाता है, और सांकल तोड़कर नगर में कोहराम मचाने लगता है। लोगों में हाहाकार मच जाता है। हाथी उत्पात मचाते समुद्र के किनारे पहुँच जाता है। श्रीपाल उन्मादी हाथी को देखता है, और स्थिर खड़ा हो जाता है। नवकार मंत्र का जाप शुरू करता है, हाथी जैसे ही उसके पास आता है, तो उसकी सूंड पकड़कर पीठ पर चढ़ जाता है और नवकार मंत्र का स्मरण करते हुए मस्तक के पीछे अपनी मुट्ठी से प्रहार करता है, और हाथी शांत हो जाता है। राजा को पता चलता है तो वह श्रीपाल के पास पहुंचता है और कहता है कि तुम्हे मेरी पुत्री के साथ विवाह करना पड़ेगा। श्रीपाल चौंक जाता है, तो राजा उसे पूरा वृत्तांत बताता है। कहता है कि मुझे संत वचन पर विश्वास है, तुम्हे विवाह करना पड़ेगा। धवल सेठ को जब यह पता चलता है तो उसकी छाती में सांप लोटने लगते हैं। विवाह के बाद दोनों ससुर जमाई संतों के दर्शन के लिए जाते हैं। वहां धवल सेठ अपनी आदत अनुसार बेईमानी पर उतर जाता है, और कर चोरी करने लगता है। राजा के सैनिकों को पता चलता है तो उसे गिरफ्तार कर लेते हैं। संतों की सभा में राजा को सूचना मिलती है कि बेईमान व्यापारी को गिरफ्तार किया गया है, तो राजा कहता है कि गलती की है, तुरंत दंड दिया जाए। श्रीपाल कहता है कि राजा आप सत्ता छोड़कर धर्मसभा में बैठे हैं, आप राजा नहीं श्रावक है अभी। यहां धर्म की मर्यादा का पालन करें। किसी ने कह दिया और अपने निर्णय ले लिया, ये अन्याय है। जिसे पकड़ है, उसे सुने-समझें फिर निर्णय लें। राजा यह सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। राजदरबार पहुंचे तो धवल सेठ को पेश किया गया। श्रीपाल ने कहा कि ये मेरे धर्मपिता है, इनका आश्रय लेकर मैं यहाँ तक आया हूँ। राजा ने कहा कि अगर ये आपके धर्मपिता है तो मेरे भी सगे हुए, और उसे छोड़ दिया जाता है। कुछ दिनों के बाद श्रीपाल और धवल सेठ रत्न द्वीप नगरी से विदा लेता हैं। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि नीच लेश्या नीच कर्म करवाती है। धवल सेठ श्रीपाल से जलने लगा, वह षड़यंत्र रचने लगता है। उसे श्रीपाल के सद्गुण नजर नहीं आ रहे हैं। वह अपने भाग्य को कोसता रहता है। वह यही सोचने में लगा रहता है कि कैसे श्रीपाल को रास्ते से हटाया जाए। एक दिन श्रीपाल को अकेला देख उसके मन में एक कुटिल विचार आता है। उसके पास जाकर कहता है कि क्या दिनभर कमरे में बैठे रहते हो, कभी बाहर के नज़ारे भी देख लिया करो, देखो समुद्र कितना सुन्दर है। धवल सेठ उसे बाहर ले कर आ जाता है। दोनों जहाज के किनारे खड़े रहते हैं, और मौका देखकर धवल सेठ श्रीपाल को समुद्र में धक्का दे देता है। इसके बाद वह जोर-जोर से रोने लगता है। सभी आते हैं, पूछते है कि क्या हुआ? वह कहता है कि मछली देखते देखते श्रीपाल का पैर फिसला और वह समुद्र में गिर गया। लेकिन वह नहीं जनता था कि श्रीपाल के पास जलतरणी विद्या भी थी, और नवकार मंत्र की शक्ति। श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।
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