गौरव चंद्राकर महासमुंद
माता पिता ईश्वर । ईश्वर अपने स्वयं को माता पिता का रूप दिया ।
माता पिता ही प्रथम गुरु , प्रथम पूज्य ।
ईश्वर से मिला वरदान है माँ
हर खुशियों का त्यौहार है माँ ।
सुख देती कष्ट सब हर लेती
मेरे लिये तो चारोधाम है माँ ।
सृष्टि के अनेक उपहारों में ईश्वर ने हमें माता पिता के रूप में स्वयं को प्रदान किया है । माँ जननी है जो केवल जन्म ही नहीं देती बल्कि हमें संसार में जीने के लिये संस्कार भी देती हैं जिससे हमें समाज में सम्मान मिलता हैं । एक तरफ माँ जन्म देती है तो दूसरी तरफ पिता हमें पालन पोषण कर समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनाता है जिससे हम राष्ट्र के विकास में योगदान करते हैं । जैसे जन्म दाता ईश्वर जिसे हम ब्रम्हा , विष्णु , महेश के रूप में मानते हैं । ब्रम्हा जन्म कर्ता विष्णु पालन कर्ता और महेश संहार कर्ता है । उसी तरह माता पिता है । माता पिता जन्म से मृत्यु पर्यन्त तक हमारे सुख सुविधा का ध्यान रख अपने मनोइच्छा , अपने सुख सुविधा को त्याग कर अपने बच्चों के परिवरिश में अपनी जां लूटा देते है और अपने बच्चों को एक अच्छे नागरिक बनाते है जिससे समाज को गौरव होता है । अपने को अभाव में रख बच्चों के हर इच्छा को पूरी करते हैं । माता पिता ब्रम्हा, विष्णु की तरह है जो हर अच्छे संस्कारों के जन्म देते है जिससे हम सम्मान पाते है । माता पिता संहारक महेश की तरह भी है जो हमारे जीवन के विकास में बाधक होने वाले बुराइयों के संहार कर अच्छे संस्कारों को जन्म देते है । मेरे विचार से माता पिता का सम्मान केवल 14 फरवरी मातृ पितृ दिवस के दिन ही नहीं बल्कि हर तिथि ,दिन, रात सम्मान , पूजा के योग्य है। माता पिता हमें अच्छी सीख देते हैं , फिर हमारे धर्म शास्त्रों में माता पिता को प्रथम गुरु कहा हैं जिसने हमें सर्व ज्ञान से अवगत कराया है । फिर हम गौरी के लाल प्रथम पूज्य श्री गणेश को कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने जगत पिता देवो के देव महादेव जब अपने पुत्र कार्तिकेय और श्री गणेश से कहा कि जाओ ब्रम्हांड के जो तीन चक्कर लगाकर मेरे पास पहले लौटेगा उसे मैं दिव्य प्रसाद लड्डू दूँगा और उस दिव्य प्रसाद को पाने कार्तिकेय अपने वाहन मयूर से ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाने निकल गये और श्री गणेश अपने वाहन चूहा में बैठ अपने पिता शंकर माता पार्वती के तीन चक्कर फेरा लगाकर माता की गोद में बैठ दिव्य प्रसाद के अधिकारी बने और पूरे ब्रम्हांड में प्रथम पूज्य देव के नाम अपने नाम कराये जिसे हम 11 दिन के गणेशोउत्सव में पूजा करते आ रहे है । श्री गणेश ,भगवान शंकर , माता पार्वती से कार्तिकेय ने सवाल किये कि मैंने तो ब्रम्हांड का तीन चक्कर लगाने के बाद यहां लौटा हूँ और अनुज गणेश तो गया ही नहीं फिर कैसे दिव्य प्रसाद लड्डू पा लिये तब गणेश जी का जवाब था कि माता पिता ने हमें जन्म दिया वही हमारे लिये देव है ब्रम्हांड है इसलिये मैं माता पिता का चक्कर लगाया और दिव्य प्रसाद प्राप्त किया जिस पर श्रीशंकर माता पार्वती ने भी श्रीगणेश की कुशाग्र बुद्धि , ज्ञान कौसल का समर्थन किया और ब्रम्हांड के सभी देवता श्रीगणेश पर पुष्प वर्षा कर उनकी बातों का समर्थन कर देवों में प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद प्राप्त किया ।
माता पिता से हम हैं । हम हैं तो प्रेम हैं । प्रेम है तो शांति है । शांति है तो समृद्धि है । समृद्धि है तो खुशहाली है । तो आओ मातृ पितृ दिवस के दिन माता पिता का पूजन करें । उनके ऋण से हम कभी उऋण नहीं हो सकते है । माता पिता जीवित है तो भी बच्चों और परिवार के प्रति उनका आशीर्वाद रहता है और स्वर्गीय है तो भी उनका आशीर्वाद परिवार के प्रति रहता है जिससे परिवार चहुँमुखी विकास करता रहता है । अंत में माता पिता को नमन स्वरूप ये काव्य पंक्तियाँ --
तू है तो जहां है
जहां में मैं हूँ माँ ।
तू रूठे तो रब रूठे
तू खुश मैं हूँ माँ ।
संतोष गुप्ता पिथौरा
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