प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थल पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केन्द्र
ट्रैक सीजी न्यूज़ (मुंगेली)
मुंगेली – छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में मुंगेली जिले का भी एक पर्यटन स्थल शामिल है, जिसे मदकूद्वीप के नाम से जाना जाता है। जिला मुख्यालय मुंगेली से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर शिवनाथ नदी के तट पर बना हुआ द्वीप है। जहां हर साल बड़ी संख्या में सैलानी ऐतिहासिक, पुरातात्विक और धार्मिक महत्व के स्थल को देखने के लिए आते हैं। शिवनाथ नदी की धाराएं दो भागों में विभाजित होकर इस टापू का निर्माण करती है। जिसे मदकूद्वीप कहा जाता है। यह द्वीप प्राकृतिक सौंदर्य और प्राचीन मंदिरों से भरपूर है। यहां 10वीं-11वीं सदी के दो प्रमुख शिव मंदिर, धूमनाथेश्वर और जलहरी स्थित हैं, जो पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। इसके अलावा, द्वीप पर कई प्राचीन शिलालेख और मूर्तियां भी मिली हैं, जो इसे एक प्रमुख पुरातात्त्विक स्थल बनाते हैं। इस स्थान का शांतिपूर्ण वातावरण, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मदकूदीप में पौराणिक कथाओं और प्राचीन धरोहरों के साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी भरपूर अनुभव होता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
प्राचीन अष्टभुजी श्री गणेश का भी मंदिर विराजमान
मदकूद्वीप में प्राचीन अष्टभुजी श्री गणेश का भी मंदिर विराजमान है जिसे देखने के लिए आसपास के अलावा बाहर से भी काफी संख्या में पर्यटक यहां पर आते हैं। मदकूद्वीप ट्रस्ट के संस्था प्रमुख श्री रामस्वरूप दास महात्यागी ने बताया कि इस द्वीप पर माण्डूक्य ऋषि के द्वारा तपस्या की जाती थी, जिसके कारण इसका नाम मंडूक द्वीप था, परंतु वर्तमान में बोलचाल की भाषा में इसे मदकूद्वीप कहा जाता है। माण्डूक्य ऋषि के द्वारा यहां उपनिषद की भी रचना की गई है, जिसमें भारत के मुहर में चार शेर वाला अशोक स्तंभ के नीचे लिखी ‘‘सत्यमेव जयते’’ वाक्य इसी उपनिषद से लिया गया है। इसी वजह से इसे ‘‘सत्यमेव जयते’’ वाक्य की जन्मभूमि भी कहा जाता है। प्राकृतिक सौंदर्यीकरण के साथ द्वीप जैसे दिखने वाले मदकूद्वीप में हर वर्ष बड़ी संख्या में सैलानी सैर पर आते हैं। इसी कारण यहां के स्थानीय लोगों को भी इस जगह का लाभ मिलता है। वह मंदिर के समीप अपनी छोटी-छोटी दुकान लगाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इस प्रकार पर्यटन स्थल से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण भी हो रहा है। यहां प्रत्येक वर्ष भव्य मेला का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मेला लुफ्त उठाने के लिए पहुंचते हैं।