भारतीय भाषा उत्सव कार्यक्रम से बच्चों में बोलने की क्षमता विकसित हुआ-पीएन मिश्रा
बसना ट्रैक सीजी गौरव चंद्राकर
नागरिकों में एकता की भावना एवं संस्कृति को संरक्षित करने,स्कूली स्तर से ही बच्चों में भारतीय भाषाओं में उपलब्ध समृद्ध साहित्य के प्रति रुचि एवं आदर की भावना विकसित करने,बहुभाषा को प्रोत्साहित करते हुए भारतीय भाषाओं में शिक्षा एवं शोध को बढ़ावा देने,भारतीय भाषाओं के प्रति प्रेम प्रदर्शित कर उसके उपयोग को प्रोत्साहित करने हेतु नई पीढ़ी तैयार करने के उद्देश्य से विकास खंड बसना में भारतीय भाषा उत्सव कार्यक्रम अंतर्गत विकास खंड शिक्षा अधिकारी जेआर डहरिया एवं विकास खंड स्रोत समन्वयक पूर्णानंद मिश्रा के मार्गदर्शन में विविध गतिविधियों का आयोजन किया गया।प्रथम दिवस पूरे विकासखंड बसना के विभिन्न विद्यालयों में नेचर वॉक कार्यक्रम के तहत् ओडिया,छत्तीसगढ़ी,हिंदी,अंग्रेजी भाषाओं में परिसर एवं आसपास स्थित पर्यावरण का अध्ययन व स्थानीय परिवेश के पेड़ पौधों का परिचय करवाया गया।साथ ही साथ विभिन्न विद्यालयों में भित्ति पत्रिका का भी प्रकाशन किया गया। शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला अरेकेल के शिक्षक प्रेमचन्द साव द्वारा सात वर्ष से नियमित प्रकाशित दीवार भित्ति पत्रिका बाल दर्पण का प्रकाशन कर विभिन्न भारतीय भाषाओं व स्थानीय भाषा में कुछ उपयोगी शब्दों व सरल वाक्यों से परिचय कराया गया। विभिन्न विद्यालयों के बच्चों को नेचर वॉक कराकर आसपास पाए जाने वाले पेड़ों की पहचान कर उनके नाम हिंदी,ओड़िया, छत्तीसगढ़ी,अंग्रेजी एवं स्थानीय भाषा में लिखकर बोर्ड बनाकर प्रदर्शित किया गया। नेचर वॉक के दौरान हुए अनुभवों को अपनी भाषा में लिखकर अपने-अपने माता-पिता को सुनाने के लिए कहा गया।द्वितीय दिवस पर छात्र -छात्राओं द्वारा संस्कृत,ओडिया,हिंदी,छत्तीसगढ़ी एवं अंग्रेजी भाषाओं में कहानी एवं कविता सुनाया गया।इसके साथ ही विभिन्न भाषाओं में बच्चों एवं शिक्षकों के लिए शब्दकोश तैयार करने का कार्य प्रारंभ किया गया। इसके साथ ही साथ लैपटॉप, स्मार्ट टीवी, स्पीकर की सहायता से बच्चों को प्रेरक प्रसंग,कहानी,कविता,कथा सुनाने का अवसर प्रदान किया गया।तृतीय दिवस बच्चों एवं शिक्षकों द्वारा हिन्दी,अंग्रेजी,संस्कृत,छत्तीसगढ़ी एवं स्थानीय भाषाओं में गीत,कहानी,कविता सुनाया गया। बसना विकास खंड के विभिन्न शिक्षक व शिक्षिकाओं द्वारा स्वरचित व पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से कविता व लघुकथा सुनाकर बच्चों को लेखन के प्रति रुचि जागृत किया गया।इस अवसर पर विभिन्न विद्यालयों में छात्र-छात्राओं द्वारा प्रेरणादायक कहानियों पर आधारित नाटक का रोल प्ले किया गया। स्थानीय भाषा में वार्तालाप पुस्तिका व लघु शब्दकोष हिंदी सम्बलपुरी ओड़िया का निर्माण शिक्षक-शिक्षिकाओं द्वारा किया गया।चतुर्थ दिवस जादुई पिटारा के तहत् प्राथमिक विद्यालय छांदनपुर,बिजराभांठा,चनाट,जलकोट,बड़े टेमरी,करनापाली,बंसुला,शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला अरेकेल,हायर सेकेण्डरी दुर्गापाली,दुलार पाली,जमदरहा, पुरुषोत्तमपुर,कुड़ेकेल सहित विभिन्न विद्यालयों में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर समुदाय के सहयोग से भाषा सीखने हेतु सहायक सामग्री का निर्माण किया गया एवं स्थानीय भाषा व अन्य भाषा संस्कृति सीखने हेतु क्लब का गठन किया गया।पंचम दिवस विभिन्न भाषाओं में लघु नाटिका एवं छोटी-छोटी कहानियों को सुनाने का अवसर प्रदान किया गया। स्थानीय लेखकों एवं कविओं द्वारा लोक कला,कविता, कहानी सुनाया गया। छठवां दिवस पर विडियो कॉल के द्वारा अरेकेल,करनापाली सहित विभिन्न विद्यालयों के छात्र -छात्राएं अन्य राज्यों गुजरात,हरियाणा के छात्र -छात्राओं से बातचीत कर स्थानीय भाषाओं में संवाद कर अनुवाद भी किया गया।भाषा उत्सव के अंतिम दिवस पर प्राथमिक विद्यालयों में खाद्य सामग्रियों का स्थानीय नाम,हिंदी अंग्रेजी,ओड़िया में अभिव्यक्ति प्रस्तुत किया गया।इस अवसर पर विकास खंड स्रोत समन्वयक पूर्णानंद मिश्रा ने कहा कि बहुभाषी कक्षाएं समृद्ध भाषायी व सांस्कृतिक पहचान का आदान-प्रदान करती है।आगे उन्होंने भाषा उत्सव को मनाने का उद्देश्य को बताते हुए कहा कि छात्रों में राष्ट्रीय एकता का संदेश देना, छात्रों में भारतीय साहित्य के प्रति रुचि, बहुभाषा को बढ़ावा देना और नई पीढ़ी में भाषा के प्रति प्रेम उत्पन्न करना है। भारतीय भाषा उत्सव कार्यक्रम अंतर्गत हिंदी,अंग्रेजी,छत्तीसगढ़ी भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों का वाचन भी कराया गया।भारतीय भाषा उत्सव कार्यक्रम के आयोजन में विकास खंड बसना के विकास खंड शिक्षा अधिकारी जेआर डहरिया, विकास खंड स्रोत समन्वयक पूर्णानंद मिश्रा, सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारी व्हीके शुक्ला, लोकेश्वर सिंह कंवर,बद्री विशाल जोल्हे,शिक्षक वीरेंद्र कुमार कर,प्रेमचन्द साव,प्रेमानंद भोई,समन्वयक डिजेन्द्र कुर्रे, गजेन्द्र नायक,वारिश कुमार,रीता पति,नमिता मिश्रा सहित शिक्षक-शिक्षिकाओं,संकुल समन्वयकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
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