अंतागढ़
अंतागढ़ की महिमा चक्रधारी सहायक पशु चिकित्सक को गर्व है अपने कुम्हार समाज पर
तपती धूप में बेच रही पोला के खिलौने बीएससी, आईटीआई, पॉलिटेक्निक में प्रथम स्थान में रही महिमा
एक दिन की छुट्टी में आई पोला के खिलौने बेचने
पोला महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में किसानों द्वारा मनाया जाने वाला एक धन्यवाद उत्सव है, जिसमें बैलों और बैलों के महत्व को स्वीकार किया जाता है, जो कृषि और खेती की गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
किंतु आधुनिक खेती ने बैलों की उपयोगिता कृषि कार्य में लगभग समाप्त कर दी है, बावजूद कृषकों ने बैलों के प्रति सम्मान और उनके कृषि क्षेत्र में दिए गए महत्त्व को आज भी मानते हैं और आज पोला त्योहार के रूप में किसान इस त्योहार को मनाते हैं।
पोला त्योहार ना सिर्फ किसानों के लिए पर्व है अपितु यह कुम्हार समुदाय जो सालों से पारंपरिक रूप से मट्टी के खिलौने और साथ ही नंदी बैल बनाकर बेचते हैं उनके लिए यह त्योहार आय का एक माध्यम भी है।
अंतागढ़ क्षेत्र में ग्राम कलेपरस में सबसे अधिक कुम्हार परिवार निवास करते हैं जिनका जीवकोपार्जन का एक मात्र माध्यम मटके बनाकर बेचना है।
अंतागढ़ के गोल्डन चौक में अपने मट्टी से बने नंदी बैल और खिलौने बेचने आई गायत्री पांडे ने बताया की पहले जैसे बच्चों में पोला त्योहार को लेकर उत्साह नही रहता, गायत्री इसके पीछे की वजह मोबाइल को मानती हैं, उनका कहना है की गांव में भी बच्चे मोबाइल में गेम खेलने में ज्यादा समय बिताते हैं, पहले की तरह पोला में नंदी बैल और खिलौनों से खेलना अब शायद इन बच्चों को पसंद नही आता।
वहीं रोहित कुमार ने बताया की लगभग एक महीने की मेहनत और एक सप्ताह इन खिलौने को बनाने और आग में पकाने के बाद दस से पंद्रह हजार तक कमाई हो जाती है, जबकि पहले इन खिलौनों की मांग ज्यादा होती थी।
इस स्थिति में कुम्हार समुदाय भी आज के भौतिक वादी समाज में अपने पारंपरिक कार्य से दूर हो रहा है,
वही कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी संस्कृति धरोहर को बचाए रखने में विश्वास रखते हैं, ऐसी ही 24 वर्षीय महिमा चक्रधारी हैं जो अपने परिवार की स्थिति को अपनी मेहनत और लगन से बदलने में भरोसा रखती हैं।
महिमा गोल्डन चौक में धूप मे खिलौने बेचते दिखाई दी। आज भी ऐसी कई लड़कियां हैं जिन्हे इस बात की शर्म नही की वो चौक में बैठकर अपने पारंपरिक व्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं।
महिमा चक्रधारी को गर्व है वो कुम्हार परिवार से है, और अपने परिवार के साथ वो मटका दिए और अन्य खिलौने बनाकर बेचती रहीं।
किंतु महिमा से बात करने पर जो बातें उन्होंने बताया वो एक मिसाल है, उनके लिए जो गरीबी का रोना रोते हुए बिना कुछ किए जिंदगी भर किस्मत को कोसते रहते हैं।
महिमा से बात करने पर पता चला उन्होंने बीएससी प्रथम स्थान से पास किया साथ ही महासमुंद वेटनरी से डिप्लोमा पचहत्तर प्रतिशत से लिया, आईटीआई से कोपा ट्रेड में डिप्लोमा प्राप्त किया,आज महिमा डोंडी में चलित पशु चिकित्सा वाहन में सहायक चिकित्सक के पद पर कार्य कर रही हैं, बावजूद इसके महिमा अपनी पारंपरिक व्यवसाय पर अपने परिवार का साथ दे रही हैं, महिमा एक दिन की छुट्टी में अंतागढ़ आई और गोल्डन चौक में तपती धूप में बैठकर मट्टी के खिलौने बेच रही हैं।
महिमा का कहना है की कोई काम छोटा बड़ा नही होता, उनके मम्मी पापा ने इसी व्यवसाय से उन्हें और उनके भाई बहन को पढ़ाया और इस काबिल बनाया तो सड़क में बैठकर इस व्यवसाय को करने में भला कैसा शर्म।