अनूपपुर। स्वावलंबी भारत अभियान तथा स्वदेशी जागरण मंच के तत्वाधान में सामाजिक संगठन, केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजकीय विश्वविद्यालय के द्वारा 21 अगस्त विश्व उद्यमिता दिवस पर अंतरराष्ट्रीय विमर्श संगोष्ठी का आयोजन ऑनलाइन माध्यम से किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आईआईटीएन तथा यूनिवर्सिटी आफ एग्दर नॉर्वे प्रोफेसर एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. मोहन कोल्हे थे।विमर्श संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. मोहन कोल्हे ने कहा कि विकसित भारत 2047 का मूल मंत्र उद्यमिता है क्योंकि 18 वर्ष से 29 वर्ष आयु के 37 करोड़ रोजगार चाहने वाले युवाओं को रोजगारयुक्त करने का एकमात्र विकल्प उद्यमिता है और इन 37 करोड़ युवाओं के उर्जा को नवाचार, क्वालिटी और वैरायटी पर विशेष फोकस किया जाये तो 25 लाख करोड़ का घरेलु और अंतरराष्ट्रीय व्यापार खड़ा हो जायेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी युवाओं को आजीविका तथा रोजगारयुक्त करने के लिए उद्यमिता, इंटर्नशिप, अप्रेंटिसशिप ऐसे प्रमुख विषयों को सम्मिलित किया गया है, स्थानीय संसाधन आधारित नवाचार तथा एमएसएमई 4.0 का समावेश पाठ्यक्रमों में होना आवश्यक हो गया है। भारत के घरेलू बाजार ही नहीं बल्कि वैश्विक बाजार के लिए तथा एक्सपोर्ट क्वालिटी के प्रोडक्ट की उत्पादन के लिए लगभग 37 अलग-अलग सेक्टर में लगभग 15000 प्रकार के प्रोडक्ट को बनाकर उद्यमिता के क्षेत्र में युवा अपना भविष्य और देश को आर्थिक गति दे सकेंगे।37 करोड़ युवाओं के ऊर्जा को सही दिशा में नेतृत्व देने विश्वविद्यालयों की अहम् भूमिकाप्रो. मोहन कोल्हे ने आगे कहा कि 37 करोड़ युवाओं को रोजगारयुक्त करने उद्यमिता को स्थापित करवाया गया तो भारत निश्चिततौर पर अगले 3 वर्षों में विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगी। इसके अलावा इंपोर्ट को कम करने के लिए विभिन्न प्रकार के इंपोर्ट को ध्यान में रखना पड़ेगा। खासतौर पर ऊर्जा के क्षेत्र में बायो सीएनजी तथा बायो एलपीजी के लिए हर जिले में एक गोवर्धन योजना के अंतर्गत ऐसे प्लांट की स्थापना करनी होगी जो उस जिले के एलपीजी तथा डीजल-पेट्रोल की पूर्ति के लिए बायो सीएनजी की आपूर्ति कर सके। प्राकृतिक संसाधन का दोहन काम करने के लिए हर घर ऊर्जा स्वराज हो तथा पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना के अंतर्गत ग्रामीण परिवेश के घर अपने खपत की बिजली का उत्पादन स्वयं कर लें तथा अपने खेत में उपयोग होने वाली पंपिंग सेट या खेती से संबंधित हार्वेस्टिंग/ थ्रेशिंग के परपस से उपयोग होने वाले ऊर्जा का निर्माण सौर ऊर्जा तथा हाइड्रोजन एनर्जी के माध्यम से हो इसके लिए एक विस्तृत कार्यक्रम चलाने होंगे ताकि ऊर्जा स्वराज के सही निर्धारण होने से बड़े पैमाने पर क्रूड तेल और अन्य गैसों का इंपोर्ट कम हो सकेगा। जिससे भारत को आर्थिक विकास में एक बड़ी ताकत मिलेगी इसी प्रकार से अलग-अलग सेक्टर में जहां पर इंपोर्ट कम हो सकें उसपर नवाचार कर इसे पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए। दवा का सेक्टर (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट), खेल प्रोडक्ट, केमिकल, टेक्सटाइल, धागा, फूड प्रोसेसिंग से संबंधित आइटम ऐसे अलग-अलग सेक्टर को चिन्हित कर इंपोर्ट को कम करने तथा एक्सपोर्ट को बढ़ाने के संदर्भ में नवाचार के शोध तथा इंटर्नशिप होने चाहिए, यहीं शिक्षा निति के मूल में है।भारत को पूर्ण-रोजगारयुक्त देश बनाने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बेहद महत्वपूर्णप्रो. मोहन कोल्हे ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सूक्ष्म व्याख्या करते हुए आगे कहा कि एनईपी के सही निर्धारण होने से युवाओं में बैठी हुई रोजगार की गलत धारणा अर्थात रोजगार मतलब सरकारी या प्राइवेट नौकरी या नौकरी के लिए प्लेसमेंट होना, इस धारणा को बदलना पड़ेगा। इसको बदलने के लिए इंटर्नशिप, अप्रेंटिसशिप, उद्यमिता, स्थानीय संसाधन पर नवाचार के माध्यम से वर्तमान में पढ़ रहे छात्रों तथा भूतपूर्व छात्रों को उद्यमी बनाने का सही प्रशिक्षण तथा उन्हें उद्यमी बनने हेतु आइडिया जेनरेशन तथा हैंड होल्डिंग करना पड़ेगा, जिससे कि वे जहां है वहीं पर अपने समर्थ के अनुसार अपने परिवार और कुटुंब प्रबोधन को ध्यान रखते हुए पर्यावरण हितैषी होकर उद्यमिता स्थापित कर सकें। इसके लिए विश्वविद्यालय के द्वारा निर्धारित की जाने वाले पाठ्यक्रम में अभूतपूर्व बदलाव की आवश्यकता है जिसकी बेहद कमी महसूस की जा रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन यदि पुरानी शिक्षा नीति के अनुरूप ही हो तथा मात्र दिखावा करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति को संस्थाएं लागू करेंगे तो इससे कोई आउटकम नहीं निकलेगा। यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का गलत निर्धारण शुरू हो गया तो यह आगे चलकर बड़ी समस्या बन सकती है। आवश्यक है कि इस मामले में सामाजिक संस्थाएं, शैक्षणिक संस्थाएं और औद्योगिक संस्थाएं आपस में मिलकर इसके लिए रणनीति तैयार करें कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की 2020 की मूल भावनाओं के अनुरूप युवाओं को और छात्रों को किस प्रकार से उद्यमी बनाया जा सके। ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को आगे बढ़ाते हुए ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ जैसे मॉडल के जरिए निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में अहम कदम उठाना पड़ेगा। हमारा एक ही संकल्प है – “राष्ट्र प्रथम, राष्ट्रहित सर्वोपरि।” इसी संकल्प को ध्यान में रखते हुए देश के सभी सेक्टरों जैसे पर्यटन, एमएसएमई, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और कृषि में एक नया और आधुनिक सिस्टम को पाठ्यक्रमों में समावेश करना पड़ेगा जिससे स्व-रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। भारत भविष्य की तकनीकों जैसे सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य आधुनिक तकनीकों में उत्पादन के लिए युवाओं को स्किलिंग करना पड़ेगा। डिज़ाइन के क्षेत्र में ‘डिज़ाइन इन इंडिया’ तथा भारत ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और नई ऊर्जा स्रोतों को पाठ्यक्रमों में सम्मिलित कर इस ओर युवाओं को उद्यमी बनाने प्रेरित करना पड़ेगा। 2047 तक भारत को एक मजबूत और विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में ये कदम अहम भूमिका निभाएंगे।पंच परिवर्तन के विषय को पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाएप्रो. मोहन कोल्हे ने आगे कहा कि स्कूल शिक्षा तथा उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में पंच परिवर्तन को अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किया जाए। प्रो. मोहन ने बताया कि किसी भी राष्ट्र के विकसित होने के लिए यह भी आवश्यक है कि उस राष्ट्र में सामाजिक सद्भाव बहुत मजबूती के साथ स्थापित होता रहे जहां जातिवाद जैसे धारणा का कोई जगह नहीं होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक समरसता को प्रत्येक छात्रों के मन में शुरू से ही प्रायोगिक तथा थियोरेटिकल दोनों विषय के रूप में शिक्षा दी जानी चाहिए। कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से परिवार कितना आवश्यक है तथा संयुक्त परिवार की क्या लाभ हो सकते हैं, इसके लिए पेडागॉजिकल टीचिंग लर्निंग किया जाना आवश्यक है। क्लाइमेट चेंज अभी संपूर्ण विश्व की समस्या बनी हुई है ऐसे में जीरो कार्बन एमिशन की दिशा में पर्यावरण हितैषी कार्य कैसे किया जा सकता हैं इस संदर्भ में एक विषय आवश्यक रूप से पेडागॉजिकल माध्यम से पढ़ाया जाना चाहिए है। स्वदेशी जीवन शैली, स्वदेशी भाव और युवाओं में स्व के जागरण के लिए भी व्यापक पहल और पाठ्यक्रम सम्मिलित होने चाहिए। साथ ही साथ युवाओं में नागरिक कर्तव्य, राष्ट्र निर्माण के कर्तव्य का बोध तथा व्यक्ति निर्माण का कार्य स्कूल से शुरू होकर उच्च शिक्षा तक चलाया जाना चाहिए, इसके लिए पंच परिवर्तन को विशेष पाठ्यक्रम के रूप में सम्मिलित किए जाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एनआरआई भारत के प्रबुद्ध अकादमिक वर्ग इस हेतु व्यापक पेडागॉजिकल कोर्स मटेरियल तैयार कर रहा है।बैठक में प्रमुख रूप से स्वावलंबी भारत अभियान स्वदेशी जागरण मंच के महाकौशल प्रांत के प्रांत सहसंयोजक तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के डीन आचार्य (डॉ) विकास सिंह, पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. मनीष तारम, स्वदेशी जागरण मंच के युवा आयाम प्रमुख शोध विद्वान चिन्मय पांडे, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व संगठन मंत्री तथा स्वदेशी जागरण मंच के मोरध्वज पैकरा, गीतेश साव, अनुराग सिंह, संदीप गुप्ता, शिवम कुमार, शुभम गुप्ता, सिद्धार्थ गुप्ता, सौरभ मांझी, राजीव किस्सी, खेलन ओरके, ओमप्रकाश पाठक, प्रणाली बोरकर, रचना मिश्रा, रामशरण प्रजापति, ऋषभ सिंह, ऋतुराज सोंधिया, हर्ष सोनी, आयुष, अमन सिंह जायसवाल, स्वमित्र साहू, अनुज राजपूत, अनुष्का यादव, भुवनेश्वर सिंह सहित अनेक युवा छात्र एवं प्रोफेसर मौजूद थे।प्रेषकचिन्मय पांडेशोध छात्रइंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालयअमरकंटक (मध्य प्रदेश)संपर्क : 74156-19070
मोरध्वज पैकरा
९९२६६ – ६९२९९