गौरव चंद्राकर महासमुंद
रक्षा बंधन पर विशेष
रक्षाबंधन – भाई बहनों के प्यार का प्रतीक
आँखों का हँसना
और रोना भी
अजीब है ।
ऐसा होता तभी है
जब अपना दूर
होता करीब है ।
ऐसा ही होता है जब एक बहन अपने भाई से शादी के बाद घर के आँगन से डोली में विदा होती है । जन्म से भाई बहन के अटूट रिश्ते होते हैं । बचपन से साथ खेले ,साथ बढ़े ,साथ हँसी ठिठौली करते हैं । दोनों को एक तिथि की प्रतीक्षा होती है और वो तिथि है रक्षा बंधन पर्व का जिसमें दूर होने के बाद अपनी प्यारी बहना को पास पाकर भाई और बहन की आँखों से खुशी के आँसू झलक पड़ते हैं ।
रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस पर्व को श्रावणी पर्व भी कहा जाता है । भारतीय संस्कृति में इस पर्व की अधिक महत्ता है ।
रक्षा बंधन का पर्व भाई बहनों के असीम प्रेम का प्रतीक है । इस दिन बहनें अपने भैया के माथे पर चंदन , कुमकुम , अक्षत का तिलक लगा आरती उतारती है और कलाई में रक्षा सुत्र बाँधती हैं । मिठाई खिलाकर मुँह मीठा करते हुये अपने भैया की उज्ज्वल भविष्य दीर्घायु जीवन की मंगल कामनाएं करती हैं बदले में भाई भी जीवन पर्यंत अपनी बहन की जीवन रक्षा करने वचन देता है ।
रक्षा बंधन पर्व मनाने के विषय में अनेक धार्मिक कारण है जिसके अंतर्गत कहा जाता है - एक बार राक्षसों और देवताओं के बीच किसी बात को लेकर लड़ाई हो गई । लड़ाई में राक्षस देवताओं पर भारी पड़ने लगे जिससे देवताओं के राजा इंद्र को चिंता होने लगी । इंद्र देव को चिंचित देख इंद्राणी ने इसका कारण पूछा । राजा इंद्र ने अपनी चिंता का कारण उन्हें बताया । कारण पता लगने पर इंद्राणी ने इंद्र के लिये सुंदर सुरक्षा कवच तैयार कर उसे इंद्र के हाथ में बाँध दिया । सौभाग्य से जिस दिन इंद्राणी ने इंद्र के हाथों में रक्षा सुत्र बाँधा वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था । । अगले दिन राक्षसों और देवताओं के बीच युद्ध हुआ लेकिन रक्षा सुत्र के कारण इंद्र ने विजय प्राप्त की । इस विजय के परिणाम स्वरूप इस दिन का महत्त्व और भी बढ़ गया ।
महाभारत काल का भी एक प्रसंग रक्षा बंधन से जुड़ा है कहते है - द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण की कटी अँगुली में अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर बाँधा गया स्नेह बंधन है । जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा द्रौपदी चीरहरण के समय रक्षा करना है ।
एक कारण मुगलकाल का भी वर्णित है - मुगल काल में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चितौड़ के महाराजा संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद विजय का समय मानकर चितौड़ पर चढ़ाई कर दी । चितौड़ की रानी कर्णावती को विपदा की इस घड़ी में राखी के धागों ने सहायता दी । कर्णावती ने तुरंत ही तत्कालीन शहंशाह हुमांयू को दूत के साथ राखी भेजी । हुमांयू राखी को प्राप्त कर अपने को धन्य मान बहन की रक्षा के लिये सेना लेकर चितौड़ चल पड़ा किंतु वहाँ उसके पहुँचने से पहले ही कर्णावती अपनी मर्यादा की रक्षा के लिये जलती चीता पर सो चुकी थी ।हुमांयू जब चितौड़ पहुँचा तो कर्णावती की चीता की आग को देख हुमांयू सिर झुका अपनी बहन के प्रति भाई प्रेम दायित्व को निभा रहा था । और बिलंब से आने के लिये बहन की जलती चीता पर नतमस्तक हो क्षमा माँग रहा था ।
इन्हीं सब प्रसंगों के कारण भाई बहनों के प्रेम का बंधन ,रक्षा बंधन का पर्व सदियों से मनाया जा रहा है । कभी कभी ऐसा भी होता है ( अक्सर राखी भाई जो अचानक जीवन में आते हैं जिसे भाई सा प्यार देने ,परिवार से जुड़ने बहनें राखी बांध देती हैं ) जब भाई बहनों का ये पवित्र बंधनों के बीच कुछ वाद – विवाद के कारण मनमुटाव हो जाता है , जिससे इस बंधन की गाँठें चुभने लगती हैं और सामने वाला जिसने राखी बाँधी है या बंधवाया है इस रिश्ते को दरकिनार कर अपने अहं से इस राखी के धागे को कमजोर करने की कोशिश करते हैं । ऐसा करने वालों से मैं निवेदन करता हूँ कि इस पवित्र रिश्ते को अपने अहं , गुस्सा , बैर , वैमनस्यता का अवरोध ना बनायें केवल दिखावे , बनावटीपन का भाई , बहन ना बनायें बल्कि प्रेम सौहार्द्र , विश्वास का बंधन बाँधकर इसे दिल से निभायें जिससे रक्षा धागे की सुरक्षा हो ।
तो आओ हम सब सांस्कृतिक विरासत की इस पवित्र पर्व को पवित्रता से मनायें और निभायें । इस पर्व को राष्ट्र की एकता , प्रेम से जोड़ते , राष्ट्र सुरक्षा का संकल्प करते हुये एक दूसरे की कलाई में बाँधें तभी रक्षा बंधन पर्व मनाने की सार्थकता होगी । अंत में —
हारा नहीं कभी जिंदगी से
जीता तेरा साथ पा कर ।
दुआ है दुआओं में मेरी
खुश रहूँ तुझे पास पा कर । ।
संतोष गुप्ता साहित्यकार
पिथौरा
जिला – महासमुंद ( छत्तीसगढ़ )