ट्रैक सीजी ब्यूरो बीजापुर
जिंदगी और मौत के बीच सरहद बनी चिंतावागु नदी,
नमक के लिए रोजाना जिंदगी को दाव पर लगाकर नदी पर करते है मिन्नूर गांव के लोग।
रोजमर्रा की जरूरतों के लिए गंज से उफनती नदी को पार करते हैं।
कई बार हुई घटनाएं, ग्रामीणों की गंजी व सामग्री भी नदी बह गई।
भोपालपटनम. नेशनल हाइवे से महज 6 किलोमीटर दूर गोरला पंचायत के मीनूर गांव के ग्रामीणों के लिए जिंदगी और मौत के बीच चिंतावागु नदी सरहद बनी हैं। गांव के उसपार बसें ग्रामीण नमक व राशन के लिए उफनती नदी मे जान जोखिम मे डालकर बर्तन गंज के सहारे नदी पार करने पर मजबूर हैं।
मीनूर गांव के ग्रामीणों कि कहानी सुनकर आपके भी रोमटे खड़े हो जायेंगे लेकिन प्रशासन को इन ग्रामीणों कि इस बड़ी समस्या से कोई वास्ता नही हैं ऐसा इनके हालत देखकर दिखाई पड़ता हैं। आज आजादी के 77 साल बीत चुके हैं भारत चाँद तक पहुंच चूका हैं लेकिन बीजापुर जिले के अंदरूनी गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के चलते अपनी जान गवा रहे हैं । गोरला पंचायत के ग्रामीणों को हर साल मजबूरन नदी पार करते हुए अपनी मौत को करीब से देखते हुए नदी पार करना पड़ता हैं। इनके हिम्मत कि दांत देनी पड़ेगी ग्रामीणों का यह एक मज़बूरी का आलम हैं रोज़मार्रे वा जरुरी सामान को लाने के लिए रोज मौत को गले लगाना पड़ता हैं। बरसात दिनो मे नदी नाले उफान पर रहते हैं चिंतावगु नदी पुरे शबाब पर बहती हैं इस आलम मे चिंतावगु नदी के उसपर बसें मीनूर गांव के सैंकड़ो ग्रामीण जान जोखिम मे डाल रहे हैं। मंगलवार को नदी का बहाव कुछ हद तक कम होने के बाद ग्रामीण अपनी जरूरतों का सामान लेने आए हुए थे तभी हमारी टीम मौके पर ग्रामीणों से मिलने पहुंची ग्रामीणों का जज्बा और उनकी हालत देखकर दंग रह गए खाना बनाने वाले गंज के सहारे किनारे पकड़कर नदी पार कर रहे हैं।
नमक के लिए रोजाना जिंदगी को दाव पर लगाकर नदी पर करते है मिन्नूर गांव के लोग।
मीनूर के गांव के लोगो को पीडीएस राशन के लिए बड़ी जद्दोजहद व परेशानी उठानी पढ़ती हैं इस गांव का राशन दुकान नदी के इसपार संचालित हो रहा हैं ग्रामीणों को राशन लेने तेज बहती नदी को पार कर आना पड़ता हैं तकरीबन 4 किलोमीटर पैदल चलकर व रिक्स का सफर तय करना पड़ता हैं ग्रामीण नमक व चावल लेने के बाद गंज मे पहले चावल पार करते हैं उसके बाद ग्रामीण पार होते हैं। यह सिलसिला कई सालो से चलता हुआ आ रहा हैं।
कई बार हुई घटनाएं, ग्रामीणों की गंजी व सामग्री भी नदी बह गई।
सिस्टम की अनदेखी और हालातों के आगे लाचार, बेबस ग्रामीण खतरा मोल लेने पर मजबूर हैं यह नदी पार करते वक्त कइयों बार ग्रमीणों का राशन व सामना भी नदी में बह गया था, इस नदी ने दो लोगों की जान भी ली लेकिन इन्हे मजबूरन यह कदम उठाना पड़ता हैं ग्रामीण अगर नदी पार होकर नहीं आएंगे तो उन्हें खाना नसीब नहीं होगा क्युकी उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं।