कायस्थ वाहिनी अंतर्राष्ट्रीय के वाहिनी प्रमुख पंकज भैया कायस्थ ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखा पत्र
जगदलपुर, ट्रैक सीजी न्यूज़। देश में नई न्याय संहिता की शुरूआत 1 जुलाई से हो चुकी है। बर्तानिया सरकार के कानून से देश को निजात मिल गई है और भारतीय कानून लागू हो चुका है। ऐसे में न्यायालयों में भी रोमन देवी जस्टीशिया की मूर्ति हटाने की मांग भी उठने लगी है। पूर्व में जहां कायस्थ समाज ने न्यायालयों से रोमन देवी जस्टीशिया की मूर्ति हटाकर सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश व कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थापित करने की मांग देशभर में की है।
इसी बीच कायस्थ वाहिनी अंतर्राष्ट्रीय के वाहिनी प्रमुख पंकज भैया कायस्थ ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने उल्लेख किया है कि जिस तरह से देश में नई न्याय संहिता लागू की गई है। उसी तरह न्याय के मंदिर न्यायालयों में स्थापित रोमन देवी जस्टीशिया की मूर्ति को हटाया जाए। उन्होंने कहा है कि रोमन देवी की मूर्ति की जगह पर भगवान चित्रगुप्त को स्थापित किया जाए, क्योंकि वे ही सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं।
वाहिनी प्रमुख पंकज भैया कायस्थ ने कहा है कि बर्तानिया सरकार के कानून में गुलामी की अवधारणा को बदलकर भारतीय कानून व्यवस्था को लागू करने से अब नागरिकों के लिए न्याय और ज्यादा सुलभ और सरल हो जाएगा। लेकिन न्यायालयों में स्थापित रोमन देवी जस्टीशिया की प्रतिमा अब भी परतंत्रता का आभास करवा रही है। ऐसे में जल्द ही रोमन देवी की प्रतिमा को हटाकर भगवान चित्रगुप्त को न्यायालयों में स्थापित किया जाए। उन्होंने इस अभियान से सभी सामाजिक संगठनों से ज्यादा से ज्यादा जुडने की अपील भी की है।
कायस्थ वाहिनी अंतर्राष्ट्रीय के युवा ब्रिगेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण श्रीवास्तव और राष्ट्रीय सचिव ऋषि भटनागर ने संयुक्त रूप से कहा है कि भगवान चित्रगुप्त को प्राप्त करने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने 12000 वर्षों की कठोर तपस्या की थी, तब भगवान चित्रगुप्त उनकी काया से प्रकट हुए थे। इसके बाद उन्हें सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश के रूप में ब्रह्मा जी ने स्थापित किया और तब से वे मनुष्यों के कर्मों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रख रहे हैं और मनुष्यों के कर्मों के आधार पर ही उन्हें स्वर्ग-नर्क में स्थान दिया जाता है। ऐसे में सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश होने के चलते उन्हें भारतवर्ष के सभी न्यायालयों में स्थापित करने की मांग की जा रही है।