दुर्ग (ट्रेक सीजी न्यूज/सतीश पारख) छत्तीसगढ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज के स्थान पर कमान किसे दी जाएगी या कोई पुराना चेहरा रिपीट होगा, कयास लगाए जा रहे हैं । भूपेश बघेल लोकसभा चुनाव हार चुके है, लेकिन कांग्रेस में पिछड़े वर्ग के बड़े नेता जरूर बन गए है। वे राहुल व प्रियंका गांधी के करीबी हैं। यदि उन्हें केन्द्र की राजनीति में नहीं लिया गया तो संभव है छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व सौंप दिया जाए। बघेल 2014 से 2019 तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के समय संगठन स्तर पर जो एकता व मजबूती उन्होंने दिखाई , उसका नतीजा रहा कि लगातार तीन चुनाव हारने के बाद पार्टी 2018 का विधान सभा चुनाव प्रचंड बहुमत से जीत गई। हालांकि जीत की लय कायम नहीं रह पाया। अगले ही चुनाव में कांग्रेस परास्त हो गई और भूपेश के नेतृत्व में सत्ता पाने वाली कांग्रेस को प्रदेश में उनके ही नेतृत्व में हार का स्वाद भी चखना पड़ा । जबकि उम्मीद थी कि कांग्रेस लगातार दूसरी बार सरकार बना लेगी। लेकिन पराजय के बावजूद बघेल का वर्चस्व कम नही हुआ। जिसका प्रमाण लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी चयन से देखने को मिला। हालाकि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को 10/1 में संतुष्ट होना पड़ा। कांग्रेस की लोकसभा और विधानसभा में हार का कारण सत्ता का अहंकार और कार्यकर्ताओं से दूरी देखने को मिला।
विधान सभा में कांग्रेस के अभी भी 90 में से 35 सदस्य है। 2003 से 2014 तक के चुनाव परिणाम के आंकडों को देखें तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या 35-38 के बीच रही है. अब यदि इस वर्ष के अंत में होने वाले नगरीय निकाय तथा 2028 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को वापसी करनी है तो उसे ऐसा नेतृत्व देना होगा जो पद अहंकार से मुक्त होकर जमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मान दें, उनकी पूछ-परख करें तथा उनका हौसला बढाए।
भूपेश बघेल ने विपक्ष में रहते हुए अपने नेतृत्व से कांग्रेस संगठन को मजबूती दी लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद न केवल उनमें वरन छुटभैये नेताओं के भी आचरण में सत्ता के अहंकार का नशा सर चढ़ कर बोलता रहा , उससे पार्टी कार्यकर्ता छिटक गए। पहले 2023 का विधान सभा चुनाव व बाद में 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम से बघेल सहित सभी सच्चे कांग्रेसीयों को सबक लेना चाहिए।
बहरहाल, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के उत्तराधिकारी की तलाश अंदर ही अंदर शुरू हो गई है। कुछ नाम चल रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस में कुछ बड़े नाम जरूर हैं जिन्होने समय-समय पर संगठन का नेतृत्व भी किया किंतु लोकसभा का चुनाव रहा हो अथवा विधान सभा का , वे कांग्रेस को वांछित सफलता नहीं दिला पाए, लिहाजा भाजपा का राज कायम रहा। यह कितनी आश्चर्य की बात है कि राजधानी क्षेत्र से कांग्रेस गत ढाई दशक से बेदखल है। 2018 के विधान सभा चुनाव को छोड़ दें तो रायपुर में भाजपा का दबदबा कायम रहा है। यह भी सोचने की बात है कि पार्टी पच्चीस-तीस बरस से रायपुर में कोई ऐसा नेता क्यों नहीं तैयार कर सकी जो रमेश बैस हो या बृजमोहन अग्रवाल या सामान्य स्तर के सुनील सोनी जैसे भाजपाइयों को चुनाव में परास्त कर सके और इसे देखते हुए कांग्रेस को सामान्य वर्ग के पार्टी कार्यकर्ताओं को भी तवज्जों देनी होगी क्योंकि कितना भी जातीय समीकरण हो,सामान्य वर्ग के कांग्रेसी नेताओं को जमीनी पकड़ को भी नकारा नहीं जा सकता,पार्टी उन्हे किसी स्तर के चुनावों में टिकिट दे ना दे किंतु उन्हे किनारा लगाकर भी वो दमदारी से खड़ा नहीं हो सकती।
कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने जिन राज्यों में प्रदेश संगठन बेहतर नतीजे नहीं दे पाया, वहां पराजय के कारणों की पड़ताल करने पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया है जो पराजित राज्यों के कांग्रेस नेताओं , विधायकों, संगठन के पदाधिकारियों व आम कांग्रेस कार्यकर्ताओं से बातचीत करेगी. इन राज्यों में छत्तीसगढ़ भी शामिल है. लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को आए थे. 9 जून को भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी और नयी लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू हुआ. यानी कुल मिलाकर कांग्रेस के इन पच्चीस दिनों में संगठन के स्तर पर कोई भारी उलटफेर नहीं हुआ है. जाहिर है वीरप्पा मोइली की रिपोर्ट आने के बाद बदलाव का दौर शुरू होगा. इसमें अभी वक्त है लेकिन अटकलें शुरू हो गई है. अपने हाल ही के छत्तीसगढ दौरे में कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य विवेक कृष्ण तनखा स्पष्टतः कह चुके हैं कि छत्तीसगढ़ में नेतृत्व बदला जाएगा। अर्थात दीपक बैज के स्थान पर किसी और की नियुक्ति की जाएगी।
अब सवाल उठ रहे कि अगला पीसीसी चीफ आदिवासी वर्ग से या पिछड़े वर्ग से ? अब देश की राजनीति अनुसूचित जाति, जनजाति, दलित, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग पर केंदित है. ये ही वर्ग पार्टियों को सत्ता का सुख देते हैं. जाहिर है, पार्टी सरकार में हो या विपक्ष में , पदों का बंटवारा इन्हीं वर्गों को ध्यान में रखकर किया जाता है. भूपेश बघेल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ,वर्ष 2019 में जो क्वांटिफायबल डाटा तैयार करवाया था , उसके अनुसार छत्तीसगढ़ में सबसे बडी आबादी साहू समाज की है। वह 30 लाख है. यादव 23 लाख , निषाद 12 लाख , कुशवाहा 9 लाख व कुर्मी करीब साढ़े आठ लाख. यानी पिछड़े वर्ग की आबादी लगभग 52 प्रतिशत है। भाजपा हो या कांग्रेस, संगठन का नेतृत्व प्रायः इसी वर्ग के हाथ में रहा है। किंतु यह वर्ग भी पूर्ण रूप से कांग्रेस के साथ नही है बल्कि इसका बहुत बड़ा प्रतिशत प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा के साथ भी है इसलिए इस 52 प्रतिशत के आधार पर संगठन और सत्ता सभी जगह इन वर्गों के एक ही चेहरे को बार बार महत्व देने से भी कांग्रेस का ग्रैंड गिरा है साथ ही सत्ता में रहते अनेक कांग्रेसी नेताओं ने धृतराष्ट्र बनकर अपने परिवार के अयोग्य पुत्र पुत्रियों रिश्तेदारों को भी राजनीति में स्थापित करने बड़े बड़े पदों पर आसीन कर दिया जिसका दुष्परिणाम भी है लोकसभा और विधानसभाओं में कांग्रेस की हार के रूप में देखने को मिला ।कांग्रेस में भूपेश बघेल पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं आगे देखना है की कांग्रेस 2018 की स्थिति को ध्यान में रखते हुवे क्या प्रदेश कांग्रेस की कमान पुनः उनके हाथ में देती है यदि ऐसा हूवा तो भूपेश बघेल को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष वाला भूपेश बघेल होकर कार्य करना होगा यदि उन्होंने अपना रवैया सत्ता सुख पाने के बाद एक मुख्यमंत्री वाला रखा तो कांग्रेस का भगवान ही मालिक होगा।