श्री भरत-लीला मेंशन बना अयोध्या, प्रभु के वन गमन पर भक्तों के भर आई आंखे
श्री भरत-लीला मेंशन में प्रितदिन दोपहर 3 बजे से बह रही भागवत रूपी अमृत धारा
महासमुंद ट्रैक सीजी गौरव चंद्राकर/स्थानीय बीटीआई रोड स्थित श्री भरत-लीला मेंशन में श्रीमती लीलादेवी चंद्राकर, सुष्मिता – आलोक चंद्राकर परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस श्रीराम कृष्ण जन्म तथा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जन्म कथा का श्रवण आचार्य नरेंद्र नयन शास्त्री (चाय वाले बाबा) सिलयारी धाम ने भक्तों को कराया। आचार्य श्री शास्त्री ने सुकदेव महाराज जी द्वारा राजा परीक्षित को बताए गए भगवान श्रीराम कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि कैसे अपने पिता राजा दशरथ के वचनों को पालन करते हुए भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष के वनवास को सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि भगवान राम जब वन को गए तब पूरा अयोध्यावासी उनके पीछे-पीछे चल पड़े। उन्होंने प्रेम और भक्ति में प्रेम को श्रेष्ठ बताया। उन्होंने कहा कि भक्ति की सीमा होती है, लेकिन प्रेम की पराकाष्ठा नहीं होती। रामायण के सारे पात्र परम वंदनीय तथा पूजनीय है। भगवान राम ने पिता के वचन पालन के लिए वनवास स्वीकार किया। माता सीता ने पति के सानिध्य में स्वर्ग का सुख समझा, भैया लक्ष्मण भाई के प्रेम व सेवा के लिए उनके पीछे चल पड़े। इन सभी में महात्मा भरत का त्याग सबसे श्रेष्ठ है। राम ने 14 वर्ष का वनवास काटा तो भरत ने भी 14 वर्ष तक तपस्वी के वेश में अयोध्या के मुहाने पर प्रभु की प्रतिक्षा की। आचार्य श्री शास्त्री ने कहा कि जो भाई-भाई में शत्रुता की बीज बो दे वह शकुनी है, वह मंथरा है। लेकिन, एक आदर्श भाई बनने की सीख हमें महत्मा भरत, भैया लक्ष्मण से मिलती है।
आज कथा के दाैरान प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण व माता जानकी के वन गमन की झांकी का जीवंत प्रस्तुत की गई। भगवान के अयोध्या छोड़कर जाते समय जो दशा अयोध्यावासियों का था, जो पीड़ा उनके मन में थी, नयनों में अश्रू धारा बह रहे थे। वही, दशा आज श्री भरत-लीला मेंशन चंद्राकर निवास में देखने को मिला। सभी भागवत प्रेमियों की आंखे उस समय भर आए जब प्रभु के वनगमन जाते समय मार्मिक भजन की प्रस्तुति हुई। आज के कथा में श्रद्धालुओं की खचाखच भीड़ देखने को मिली। सैकड़ों लोगों ने भागवत कथा का श्रवण किया। ज्ञात हो प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से श्री भरत-लीला मेंशन में भागवत कथा प्रवचन चल रहा है।
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