दुर्ग (ट्रेक सीजी न्यूज/सतीश पारख) जय आनंद मधुकर रतन भवन की धर्म सभा में उप प्रवर्तक डॉक्टर सतीश मुनि जी श्री विजय श्री जी एवं साध्वी प्रियदर्शनी श्री जी के सानिध्य में संत श्री रमण मुनि जी का 39 वा साध्वी विचक्षणा श्रीजी 4था साध्वी सु प्रज्ञप्ति श्री जी का 5 वां अक्षय तृतीया पारणा करवाने श्रमण संघ के वरिष्ठ सदस्य श्री पारस मल संचेती जसराज जी पारख सुरेश लुनिया टीकम छाजेड़ बंटी संचेती ने चक्षुरस गन्ना रस से आहर समर्पित करने का लाभ लिया इसके साथ-साथ श्रमण संघ परिवार के श्रीमती भारती पारख श्रीमती सरला देवी बोहरा का जय आनंद मधुकर रतन भवन में अभिनंदन किया गया इस तपस्या में एक एक दिन के अंतराल में उपवास लगातार 1 वर्ष तक करना होता है
ऋषभदेव परिसर में 5 वर्षीतप तब आराधकों का अभिनंदन
बाफना परिवार एवं आदिनाथ जैन मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव में संत श्री रमण मुनि साध्वी विचक्षणा श्री जी साध्वी सु प्रज्ञप्ति श्री जी के साथ साथ नीलम बाफना कंचन बाफना नीता बाफना दीपा गोलक्षा प्रवीण गोलक्षा का अक्षय तृतीया अभिनंदन एवं पारणा महोत्सव संत ऋषभ सागर जी डा सतीश मुनि जी संत कल्प यज्ञ सागर साध्वी संधमित्रा श्री जी साध्वी विजय श्रीजी साध्वी प्रियदर्शना श्री जी प्रेरक उपस्थितिथी एवं पावन सानिध्य में ऋषभदेव परिसर में आध्यात्मिक वातावरण में अंकित लोढ़ा के भक्ति गीतों की शानदार ध्वनि के साथ प्रारंभ हुआ इसके पूर्व वर्षीतप करने वाले साधकों की भव्य शोभायात्रा सदर जिन मंदिर से से प्रारंभ होकर ऋषभदेव परिसर में शोभायात्रा का समापन हुआ जहां आदिनाथ मंदिर ट्रस्ट एवं वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ ने सभी तब आराधों का अभिनंदन किया
कार्यक्रम में उपस्थित जनों के गौतम प्रसादी की व्यवस्था वर्षीतप आराधक परिवार की ओर से रखी गई थी
भगवान आदिनाथ से जुड़ी है अक्षय तृतीया का पारणा
श्रेष्ठ लोग वर्षीतप की तपस्या करते हैं वे इस दिन शत्रुंजय की शीतल छाया में गन्ने के रस का सेवन करके तपस्या पूरी करते हैं। भगवान ऋषभदेव ने लगातार एक वर्ष तक उपवास करने के बाद इसी दिन पारण (तपस्या का समापन) किया था। शत्रुंजय तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का है विशेष महत्व, यहां पढ़ें पूरी खबर
जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का है विशेष महत्व,भारतीय संस्कृति में बैसाख शुक्ल तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है, इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाताहै। जैन दर्शन में इसे श्रमण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है। जैन दर्शन के अनुसार भरत क्षेत्र में युग का परिवर्तन भोग भूमि व कर्मभूमि के रूप में हुआ। भोग भूमि में कृषि व कर्मों की कोई आवश्यकता नहीं। उसमें कल्प वृक्ष होते हैं, जिनसे प्राणी को मनवांछित पदार्थों की प्राप्ति हो जाती है। कर्म भूमि युग में कल्प वृक्ष भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और जीवको कृषि आदि पर निर्भर रह कर कार्य करने पड़ते हैं। भगवान आदिनाथ इस युग के प्रारंभ में प्रथम जैन तीर्थंकर हुए।
प्रथम आहार गन्ने का रस का दिया
उन्होंने लोगों को कृषि और षट् कर्म के बारे में बताया तथा ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य की सामाजिक व्यवस्थाएं दीं। इसलिए उन्हें आदि पुरुष व युग प्रवर्तक कहा जाता है। जैन दर्शन में अक्षय तृतीया का बहुत बड़ा आज भी जैन धर्मावलंबी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं।