आलेख – लोकतंत्र का महापर्
गौरव चंद्राकर महासमुंद
लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व हमारे सामने आ रहा है। और राजनीति इसका थर्मामीटर है। अगर अच्छे लोगों के हाथों में सत्ता आ जाए तो अभूतपूर्व और शुभ परिवर्तन होने लगते हैं। लेकिन इसका उल्टा हो जाए तो क्या होगा? इसे कुछ इस तरह समझना होगा। बुरा आदमी बुरा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वह अपने स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ नहीं देखता। कुछ नहीं सोचता।
इसी तरह अच्छा आदमी इसलिए अच्छा है क्योंकि वह अपने स्वार्थ के बजाय दूसरों के हित को प्राथमिकता देता है। कुल मिलाकर, सत्ता का शुभ और ईमानदार होना अत्यावश्यक है… और इसे हम सब मिलकर संभव बना सकते हैं। क्योंकि वोट हमारे हाथ में है। हम ही व्यक्ति को नेता, नेता को मंत्री बनाते हैं। अपनी ताकत को पहचानना ही बुद्धिमानी है। इसके बिना आप शुद्धता नहीं ला सकते। न राजनीति में, न ही सार्वजनिक जीवन में। तरह-तरह के लोग लगे हुए हैं सत्ता का सिरमौर बनने में। वे चाहे खुद को भावी किंगमेकर समझें या किंग, लेकिन तय हमें ही करना है कि कौन क्या बनेगा और क्यों बनेगा!अपनी ताकत को पहचानना ही बुद्धिमानी है। इसलिये आइये लोकतंत्र के नये सवेरे का स्वागत हम अपने मतदान का सदुपयोग करके करें।दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है कि मतदान के महापर्व में हम बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभायें।लोकतंत्र के निर्माण में एक-एक मत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो आप सभी से यह विनम्र निवेदन है कि बिना किसी दबाव या प्रभाव के अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य कीजियेगा।
डिम्पल डड़सेना
जिला युवा आइकॉन महासमुंद