इसमें कांकेर जिले की अंतागढ़ तहसील और पखांजूर तहसील शामिल है , और यह अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है ।
छत्तीसगढ़ राज्य की अंतागढ़ विधानसभा सीट नक्सली प्रभावित क्षेत्र है. इस क्षेत्र में 1 लाख 65 हजार 148 वोटर्स हैं, जिनमें से 80 हजार 958 पुरुष और 84 हजार 182 महिला वोटरर्स शामिल हैं. यहां बंग समाज की संख्या 40 फीसदी है जबकि आदिवासी समुदाय करीब 45 पीसदी है. अंतागढ़ में साक्षरता दर भानुप्रतापपुर और कांकर के मुकाबले काफी कम है.
अंतागढ़ विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है. भाजपा के विक्रम उसेंडी यहां से 4 बार विधायक रह चुके हैं.
विधानसभा क्षेत्र में कृषि और मछली पालन प्रमुख आय के साधन हैं. यहां पर एक लौह अयस्क माइंस भी है, जिससे गांववालों को रोजगार मिला है. यहां पर कुछ आकर्षक स्थान हैं जो पर्यटन के लिए खास है, उनमें चर्रे मर्रे जल प्रपात और परलकोट जलाशय शामिल है.
विकास की बात करें तो विकास के मामले में अंतागढ़ विधानसभा नक्सली गतिविधियों की वजह से बाकी अन्य विधानसभा के मुकाबले में पीछे रह गया।
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना ने बदली गांव की तस्वीर
नक्सल समस्या का दंश झेल रहे अंदरूनी गांव के लोगों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से बनाई गई सड़कें एक संजीवनी की तरह काम कर रही है, गांव गांव को मुख्य मार्ग सहित ब्लाक मुख्यालय तक जोड़ने का काम इन सड़कों के बन जाने के बाद संभव हो पाया, वहीं सड़क की वजह से दूरस्थ अंचल में बसे गांव जो अत्यंत नक्सल प्रभावित थे वहां तक स्वास्थ्य और शिक्षा के संसाधनों को पहुंचाना सुगम हो गया।
पिछले दस वर्षों में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और सड़कों सहित रेल पात बिछाने में केंद्रिय सुरक्षा बलों ने विशेष भूमिका का निर्वहन किया है।
एक समय जब नक्सली पक्के इमारतों के निर्माण की अनुमति नहीं देते और स्कूलों के पक्के मकानों को धराशाई कर देते वहीं आज गांव गांव में पक्के स्कूल और उप स्वास्थ्य केंद्र बनने लगे हैं।
सरकार के कार्यों से कोई शिकायत नहीं स्थानीय प्रशासन की उदासीनता से दुखी हैं ग्रामीण
विकास के मामले में अगर पिछले 10 वर्षों के पन्ने खोले जाए तो अंतागढ़ विधानसभा में काफी विकास कार्य हुए हैं बावजूद इसके लोगों में अभी शिकायत है कि उन्हें जो बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए जैसे पानी स्वास्थ्य और शिक्षा वह उन्हें नहीं मिल पा रहा है, बिल्डिंग बन गई पर वहां स्वास्थ्य सेवा देने वाले कर्मी नहीं आते स्कूलों के भवन बन चुके हैं पर शिक्षकों की कमी बच्चों का भविष्य नहीं गढ़ पा रही है, लोगों का कहना है अधिकारी जो जिले और ब्लॉक में बैठे हैं उन्होंने गांव तक पानी जैसी मूलभूत जरूरत अब तक बहाल नहीं कर पाई है, कई गांव के लोग अभी भी तुम या झरिया से पानी पीने को विवश है जबकि जल जीवन मिशन के तहत अंतागढ़ ब्लॉक में कार्य अन्य ब्लाकों एवं विधानसभा की तुलना में महज 25% ही हो पाया है।
अंतागढ़ विधानसभा के ब्लाक अंतागढ़ के अंतिम छोर में बसे ग्राम पंचायत करमरी के आश्रित गांव कोंगरा निवासी पूनाई राम ने बताया की गांव में वर्ष 2014 में मिडिल स्कूल खोला गया पर आज तक शिक्षा विभाग भवन नही बना पाया और न विषय वार शिक्षक बच्चों को मिल सके।
सड़क तो बन गई है किंतु उन्हें बैंक के कार्यों के लिए चालीस से पचास किलोमीटर तक का सफर तय कर अंतागढ़ ब्लाक मुख्यालय आना पड़ता है जबकि आमाबेड़ा में बैंक की व्यवस्था हो जाती टू इन ग्रामीणों के लिए ये दूरी कम हो जाती।
धनारो आचले का कहना है उन्हे अभी तक सरकार द्वारा दिए जाने वाला चावल ही मिलता है इसके अलावा धनातो के घर तक या आसपास पानी को स्रोत सिर्फ झरिया ही है, ग्राम गर्दा में जलजीवन मिशन के सिस्टम लगाए गए है बावजूद इसके इनमें से पानी किसी ने निकलते नही देखा। चुनाओ को लेकर धनारो बाई को ज्यादा उत्साह नही है पर उनका कहना है वो वोट डालने जाएंगी
बैजनाथ कोर्राम ग्राम हिमोड़ा नयापारा।
चार से पांच महीने पहले जल जीवन मिशन का नल लगाया गया है किंतु पानी इस नल से निकलता है, बैजनाथ ने बताया की चुनाव का कोई शोर नही सुना उन्होंने, और चुनाव कब है इसकी जानकारी नहीं है।
पानी पीने के लिए सुखी नदी में झरिया बनाकर पानी का इंतजाम करना पड़ रहा है।