जनता में अच्छा माहौल होने के बावजूद भाजपा अति आत्मविश्वास नही दिखा रही है
दुर्ग (ट्रेक सीजी न्यूज/सतीश पारख) दुर्ग लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की तैयारी पूर्ण फुर्तता के साथ नही चल रही है। ग्राउंड पर देखें तो लगता है जैसे कांग्रेस के स्थानीय नेता अभी से पराजय की मानसिकता से घिर चुके हैं ।वैसे भी, दुर्ग लोकसभा में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र साहू को चुनाव जीताने का दारोमदार उन नेताओ पर हैं जिन्हें जनता ने पहले ही खारिज कर रखा है। कांग्रेस संगठन की चुनाव प्रबंधन में कुशलता की कमी के चलते भाजपा यहां आरंभिक बढ़त पर दिख रही है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह चिंता का विषय है। चुनाव में हार–जीत तो होना ही होता है, पर इतनी पुरानी कांग्रेस पार्टी गणतंत्र की चुनाव रूपी लड़ाई संजीदगी से लड़ते दिखे, यह आम जनापेक्षा है। मोदी फैक्टर के बावजूद राजनांदगांव और कोरबा में कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। सवाल उठना लाजिमी है, दुर्ग में कांग्रेस प्रत्याशी क्यों कमजोर पड़ रहें हैं? जबकि जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनने के साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र साहू तैयारी में जुट गए थे। गत विधानसभा चुनाव में दुर्ग लोकसभा के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से पाटन और भिलाई नगर में कांग्रेस को सिर्फ दो विधानसभा में जीत मिली थी। पाटन विधायक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव लोकसभा एवं भिलाई नगर के कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव बिलासपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। लिहाजा, वे अपने लोकसभा क्षेत्र में व्यस्त है। इस वजह से दुर्ग के कांग्रेस कैंडिडेट राजेंद्र साहू मुश्किल में पड़ गए हैं।फिर भी उम्मीद है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब 26 अप्रैल को अपना नांदगांव चुनाव निपटा कर दुर्ग लौटेंगे, तब कांग्रेस संगठन में जान आयेगी। अभी कांग्रेस उन पीटे हुए चेहरो के भरोसे है, जो चुनाव की लड़ाई से खुद खारिज हो चुके हैं। लिहाजा, अधूरे मन से अपने प्रत्याशी राजेंद्र साहू को जीताने की रणनीति बना रहे हैं। राजेंद्र साहू की चुनावी व्यवस्था संभाल रहे लोगों में ऐसा कोई चेहरा नहीं दिखता जिन्हें चुनाव जीताने का गहरा अनुभव हो। दुर्ग जिले की छः विधानसभा सीटे, दुर्ग लोकसभा का केंद्र है। यहां कांग्रेस को तगड़े तैयारी की जरूरत थी।दुर्ग शहर, दुर्ग ग्रामीण, भिलाई नगर, वैशाली नगर, अहिवारा और पाटन ; इस इलाके में करीब तीन चौथाई मतदाता रहते हैं, और इन सभी क्षेत्रों में कांग्रेस कमजोर नजर आ रही है। कांग्रेस के स्थानीय नेता अब तक जमीन पर नहीं उतरे हैं। प्रत्याशी राजेंद्र साहू को छोड़ दें, तो कांग्रेस की तैयारी कार्यालय स्तर से बाहर तक नहीं आई है।जबकि, भाजपा के कार्यकर्ता वार्ड स्तर पर दस्तक दे रहे हैं और मतदाताओं का मन टटोल रहे हैं। जनता में अच्छा माहौल होने के बावजूद भाजपा अतिआत्मविश्वास नही दिखा रही है। इसे चुनावी प्रबंधन के बेहतर उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है।