संस्कृति एक नैसरगिक तरंग है जो उस क्षेत्र के लोगो के जीवन शैली, खान पान, रहन सहन, उत्सव, त्यौहार, पूजा पाठ, आदि मे स्पष्ट रूप से दिखता है l यही उनकी वास्तविक पहचान है l इसमें तबदली बहुत सोच समझकर करना चाहिए l किसी भी राज्य क़ि मूल संस्कृति के साथ छेड़ छाड़ करने क़ि हिम्मत कोई भी राज्य के सत्ताधारी लोग नहीं करते परन्तु छत्तीसगढ़ ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहाँ के शासक यहां क़ि संस्कृति को जैसा चाहे वैसा करते है l यहां के नेताओं मे अपने राज्य के संस्कृति के प्रति लेशमात्र भी पीड़ा नहीं है l ये तो सिर्फ पार्टी पुत्र है l पार्टी ने जैसा कहा वैसा ये लोग चलते है l क्या छत्तीसगढ़ क़ि संस्कृति बीजेपी व कांग्रेसी सोच के आधार पर चलेगा?क्या हमारे महापुरुष प्रेरक पुरुष नहीं है जिनके नाम से शासन के योजनाओं को रखा जाय जिनसे हमारे आने वाली पीढ़ी प्रेरणा ले सके उनके इतिहास पर गर्व कर सके l क्या उन्हें सिर्फ नेहरू, राजीव, इंदिरा,अटलजी,दीनदयाल उपाध्याय, श्याप्रसाद मुखर्जी ही नजर आते है l इन पार्टियों के उपनिवेशिक मानसिकता से कब आजाद होंगे हम? यदि खुदा न खास्ता किसी ने रखा भी दिया तो उसमें भी बीजेपी कांग्रेसीकरण किया जाता है lडॉ खूबचंद बघेल व शहीद वीरनारायण सिँह मे क्या अंतर है? दोनों के अपने अपने संघर्ष है एक ने छत्तीसगढ़ मे अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का आगाज किया तथा अपना बहुमूल्य जीवन कुर्बान किया वही डॉ खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ अलग राज्य का आधारशीला रखा उसके लिए निरंतर संघर्ष किया l यदि किसी पार्टी ने किसी योजना को छत्तीसगढ़ के किसी भी महापुरुष के नाम से रख दिया है तो क्या यदि दूसरी पार्टी क़ि सरकार बनती है तो उसी योजना को छत्तीसगढ़ के दूसरे महापुरुष के नाम से रखना क्या ये उन दो नो महापुरुष को एक दूसरे के विरुद्ध खडे कर के उसके योगदान का अपमान नहीं है? ऐसा करके ये लोग क्या सन्देश देना चाहते है? ये कांग्रेसी महापुरुष है ये बीजेपी महापुरुष है, ये लोग जो खेल सावरकर व गाँधी को लेकर खेला तथा लोगो के मन मे विद्वेष पैदा किये है यही मानसिकता यहाँ भी जाहिर करना चाहते है l छत्तीसगढ़ मे मड़ई मेला क़ि संस्कृति है l राजिम पुन्नी मेला का अपना एक अलग पहचान है l जो अपने कई पौराणिक, पुरातत्विक व ऐतिहासिक गाथाओ के लिए जाना जाता है l उसमे से भक्त माता राजिम जिनका नाम इस शहर से जुड़ जाता है जो अपने आप मे ही छत्तीसगढ़ को बड़ा बना देता है l भक्त माता राजिम छत्तीसगढ़ के साहू समाज क़ि आराध्य देवी भी है जो साहू समाज को एक अलग सांस्कृतिक पहचान दिलाता है l छत्तीसगढ़ सप्त ऋषियों क़ि तपो भूमि, जहाँ एक ओर समृद्धि आदिवासी संस्कृति है तो एक तरफ कबीर पंथ व सतनाम पंथ का निर्मल धारा बहती है ये तीनो संस्कृतियों का सुंदर त्रिवेणी संगम हमारे छत्तीसगढ़ के संस्कृति मे देखने को मिलता है l भगवान कृष्ण क़ि लीला स्थली छत्तीसगढ़ जिसका सबूत आरंग व बानबरद है l इन सबके बावजूद कोई ये कहे क़ि छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय ख्याति प्रदान करने के लिए किसी अन्य सांस्कृतिक नाम क़ि जरूरत है तो ये खुद के पहचान को कमतर बताने जैसे होगा l इनसभी प्रसिद्ध स्थानों पर मेला लगता है l कुम्भ के प्रति लोगो का अपना अलग आस्था व विश्वास है तथा मड़ई मेला के प्रति लोगो का अलग आस्था विश्वास है l छत्तीसगढ़ मे पूर्णिमा अर्थात पुन्नी का अलग ही धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व है l लोग इस दिन को बहुत ही शुभ मानते है l इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करते है l मंदिरो व देव स्थलों मे पूजा पाठ, उपवास करते है दान सेवा या अन्य पुण्य के काम करते है l छत्तीसगढ़ के लोग संतोष प्रिय है वे इन्ही पुण्य स्थानों मे जाकर अपने तीर्थ के प्यास को बुझा लेते है l इसलिए कवि ने कहा है क़ि कहा जाबे बड़ दूर हे गंगा पापी इहा तरव रे… l बो दे गहु… चल दे कहु… ये बात भी छत्तीसगढ़ीयों के शैलानी व संतोषी दोनों प्रकृति को प्रदर्शित करता है l राजिम पुन्नी मेला इन्ही सहज, सरल संस्कृति क़ि परिचायक है… सत्ताधारी लोग अपने चंद स्वार्थो के लिए इन्हे खत्म नहीं करे l छत्तीसगढ़ के विधान सभा मे स्थान पाने वाले विधायक जन कृपया अपने आपको पार्टी से हटकर अपनी सांस्कृतिक पहचान व विरासत को समझने का प्रयास करे…*घनश्याम गजपाल….*सरपंच,ग्राम पंचायत करगाडीहब्लॉक दुर्ग छत्तीसगढ़
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