दुर्ग। एक तरफ शहर के नवनिहाल खेलने के लिए मैदान के बेजा इस्तेमाल से परेशान हैं तो दूसरी ओर दुर्ग शहर के आउटर इलाकों की बड़ी-बड़ी जमीनों पर कई सियासतदारों ने कब्जा कर रखा है। कब्जा करने वालों में भाजपा–कांग्रेस से जुड़े लोगो के अलावा भूमाफिया शामिल है।टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के तहत जिन जगहों को पार्क या खेल मैदान के लिए छोड़ दिया गया था। उन जमीनों पर एकमुश्त कब्जा हो चुका है। खाली पड़ी जमीनों को निशाना बनाने वाले नेताओं की नजर पता नहीं कैसे इन जमीनों पर पड़ जाती है? विद्युत नगर, दुर्ग में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिस पार्क के लिए 15 लाख रुपए अनुदान दिया था, वह जगह अब प्री कास्ट दीवारों से घेर लिया गया है । पूछने पर इसके पीछे बड़े राजनीतिक लोगों का नाम लिया जाता है । अब आम जनता के पास इतना गर्ज नहीं कि वह रजिस्टार ऑफिस या निगम कार्यालय जाकर इन जमीनों का हाल-चाल ले। आम लोग जानते हैं कि यदि इन जमीनों में कब्जा कर लिया गया है तो वह कुछ नहीं कर सकते । क्योंकि, बड़े लोगों से लड़ना आम लोगों के बस में नहीं।गहन छानबीन किया जाए और असलियत उजागर किया जाए तो लोग दांतों तले उंगली दबाते रह जाएंगे। एक साथ दो एकड़, चार एकड़ और 7 एकड़ महंगी जमीन कैसे इन प्रभावशाली लोगों की मिल्कियत हो गई, भगवान ही जानता है । ऐसे कब्जे देखकर आम लोगों को बहुत कोफ्त होता हैं । उन्हें लगता है कि जिन लोगों को उन्होंने अपना अगुवा बनाया, राजनीतिक दिशा देने के लिए नेता चुना, वही लोग आम लोगों के जमीनों के बंदरबांट में लगे हुए हैं । ऐसे में कोई कहां शिकायत करें। अधिकांश लोग शिकायत करने का हिम्मत भी नहीं जुटाते। समाज में सामूहिक साहस व समवेत चेतना के अभाव के चलते प्रभावशाली लोग मनमाने ढंग से जमीनों पर अवैध कब्जा करते हैं। बात सीधी है। कई अरब रूपयो के जमीन को इन नेताओं ने कब खरीदा, बताने वाला कोई नहीं। जो लोग 25 साल पहले छोटे से घर में रहने के लिए संघर्ष करते थे । क्वार्टर में रहते थे । नेतागिरी के अलावा कोई विशेष उद्योग धंधा या कामकाज नहीं करते थे। वे कब और कैसे अरबों रूपयो की जमीन के मालिक बन गए? यह देश की राजनीतिक दुर्दशा का ज्वलंत उदाहरण है। छोटे-छोटे लोगों को छोटी-छोटी जमीनों के लिए सालों तक अदालत का चक्कर लगवाने वाली व्यवस्था करोड़ अरबों रूपयो की इन जमीनों पर कैसे खामोश हो जाती है, कौन बताएं ।छोटे-मोटे पसरा लगाकर धंधा करने वाले लोगो को बेदखल करना आसान है, मगर प्रभावशाली लोगों के बेजा के कब्जे का अनदेखा भला कितना कठिन है?अभी जो खेल मैदान या पार्क बच्चे हैं उन्हें बचाए रखना हर एक शहरी का दायित्व है । खेल मैदान में सिर्फ खेल का आयोजन हो ।खेल मैदान में दूसरी चीजों का आयोजन कर उसे कब्जा करने का रास्ता बनाता है। हालांकि पद्मनापुर क्रिकेट ग्राउंड जैसे बड़े खेल मैदान पर अब कोई कब्जा नहीं कर सकता, क्योंकि लोगों में इतनी जागरूकता आ गई है। पर शहर के आउटर इलाकों के खेल मैदान व पार्क को बचाए रखना जरूरी है । दुर्ग–भिलाई तेजी से विस्तार कर रहा है। नए बसे इलाकों के लोग एकजुट नहीं हो पाते। विरोध करने का अवसर नहीं मिल पाता उन्हें। और वह जमीन किसी रसूखदार के कब्जे में चली जाती
छोटे छोटे पसरा वाले कब्जा धारियों को बेदखल कर ईमानदारी का चोला पहना प्रशासन कब करेगे रसूखदारों के कब्जों पर बेदखली की कार्यवाही?करोड़ नही, कई अरब रूपयो की जमीनों पर बड़े बड़े लोगो का कब्जा।
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